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जैनत्व जागरण.....
पतन के साक्षी रूप में पुरुलिया की धरती पर अब भी खड़ा है। यद्यपि महाकाल के स्त्रोत भा मिट गये हैं, देह के अलंकार, क्षय हो गये हैं देह के सर्वांग, विवर्ण हो गया है रंग फिर भी महाकाल के इस महासमुद्र में एक आलोक स्तम्भ की तरह सराक सम्प्रदाय के मनुष्यों को दिक् निर्णय करता हुआ यह कह रहा है- मैं इतिहास बनकर आज भी बचा हुआ हूँ। डर क्या अतीत ही तुम्हें पथ दिखाएगा ।"
__ (युधिष्ठिर माझी) वर्द्धमान जिले का नामकरण जैन तीर्थंकर महावीर के नाम से सम्बन्धित है । इस जिले के दामोदर तीरवर्ती अंचल किस प्रकार जैन धर्म से प्रभावित हुए थे उसके सैकड़ों प्रमाण उपलब्ध हैं । वर्द्धमान जिले के बगुनिया, शिवपुर, काजोड़ा, नन्दी, जामुरिया, रक्षितपुर, बसुधा, माजूरिया, खाण्डारी, मानकर, कसवा, सुयाता, एड़ाल, सर, आदरा, परशूड़ा, नवावहाट, रायना, खण्डघोष, बोंयाई, श्यामनगर, भारूचा, मण्डलजाना इत्यादि अनेकों गांवों में जैन सम्प्रदाय के विभिन्न उत्सव आज भी अनुष्ठित होते हैं । ये सब क्षेत्र दामोदर नदी के दोनों तटों पर अवस्थित हैं । जीटी रोड़ के पास ही बराकर नदी के तट पर आसनसोल महकमा के बेगुनिया में चार प्राचीन सुदर्शन मंदिर हैं । ऐतिहासिक वेगलर के मत से इन मन्दिरों के कई-कई तो छठी शताब्दी के हो सकते हैं । अवश्य ही मन्दिर में स्थापित शिलालिपियों को लेकर बहुत तर्क वितर्क हुआ है । बहुत सी पत्थर की मूर्तियाँ भी यहाँ मिली है जो पुरुलिया के तेलकूपी के मन्दिरों की मूर्तियों से मिलती जुलती हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि बेगुनिया किसी समय जैन धर्म का अन्यतम केन्द्र था । किन्तु बाद में वहाँ की धर्मीय इमारतों और मूर्तियों को शैव और ब्राह्मण धर्म ने ग्रास कर लिया । इस विषय में युधिष्ठिर माँझी ने लिखा है
"पाकविड़रा के मन्दिर धर्मान्ध मनुष्यों के काले हाथों से नहीं बच सके । किन्तु बराकर के मन्दिर शिवलिंग का कवच धारण कर अक्षत रह सके हैं । बराकर मन्दिर के गर्भ में शिवलिंग स्थापित कर देने के कारण अब इन्हें शिव मन्दिर कहकर ही प्रचार किया जाता है। पश्चिम बंग सरकार