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जैनत्व जागरण.....
आगे उन्होंने लिखा है- “The more adventurous Sauats Jains having alone penetrated the jungles where they were rewarded with the discovery of copper upon the working of which they must have spent all their times and energy, as with the exception of the tanks above mentoned, the mines furnish the sole evidence of their occupation of that part of the countuy.”
इन सराकों ने धने जंगलों से धरे अंचलों में ताम्र खदानों की खोज की । इन खदानों से ताम्र निष्कासन कर जीविका का निर्वाह करते हुआ आर्थिक वृष्टि से काफी सम्पन्न हो गये तब वहा के आदिवासी जातियों जिनमें 'हो', 'भूमिज' आदियों ने सराकों पर अत्याचार शुरू कर दिया । फलस्वरूप इस अंचल को छोड़कर मानभूम में जाकर बसना पड़ा । उन. अंचलों में
आज भी बड़े बड़े जलाशय है । जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका निर्माण सराक लोगों ने किया था । 'हो' जाति के लोग इन तालाबों को सराकी तालाब के नाम से पुकारते हैं। कर्नल डॉल्टन के अनुसार यह घटना क्रम २००० वर्ष पहले हुई थी। मानभूम अंचल में भी इन्होंने ताम्र खदानों की खोज कर वहीं अपनी बस्ती कायम की । ये ताम्र खदानें इनके अधिपत्य में भी थी तथा ये लोग उनमें काम भी करते थे।
"छोटानागपुर अंचल में कई छोटे-छोटे पहाड़ हैं । इन पहाड़ों की चोटियों पर कई गहरे गड्ढे हैं, जिनके निकट अभी भी जहाँ-तहाँ उत्सर्जित धातु मल या स्लेप बिखरे हुए मिल जाते हैं । इसे देखकर लगता है यह ताम्र उत्सर्जित धातु मल हैं। इन दिनों के पुरुलिया (पूर्वी अविभाजितमानभूम) जिला के तामखुन नामक स्थान के पहाड़ों और टीलों की चोटियों तथा ढलानों पर कई ऐसे गहरे गड्ढे है जहाँ ताम्र धातु मलों के ढेर लगे हुए हैं । ऐसा लगता है इन गड्ढों के निर्माता सराक ही थे क्योंकि सराकों के बारे में कहा जाता है कि वे इन ताम्र खदानों में मजदूरी किया करते
* चम्पापुरी में श्री वासुपूज्य भगवान् जैनों के बारहवें तीर्थंकर का अति प्राचीन जैन मन्दिर है । (अनुवादक)