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जैनत्व जागरण.....
हैं- यद्यपि छोटा नागपुर के स्थान-स्थान पर उनकी बस्तियाँ पायी जाती हैं फिर भी उनके पूर्वज वहाँ के अधिवासी नहीं थे । उनका आदि निवास स्थान था पाँचेत । उन लोगों का देहवर्ण, गठन और केश विन्यास मुण्डा
और कोल जाति के लोगों से भिन्न था । वे बड़े ही उद्योगी थे । जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने कृषि और वाणिज्य दोनों को ही ग्रहण किया था । इनके स्थापत्य सम्बन्ध कार्यों के विषय में लिखते समय डाल्टन ने लिखा-मानभूम जिले में मैंने दो विभिन्न प्रकार के स्थापत्यों के ध्वंसावशेष देखे । उनमें जो प्राचीन हैं उनके विषय में कहा जाता है- और इस विषय में कोई सन्देह भी नहीं हैं कि वे उन प्रथम आर्य औपनिवेशियों द्वारा निर्मित थे जिन्हें कि सेराप, सेराव, सेराक या श्रावक कहा जाता है । यहाँ तक कि भूमिज जिन्होंने कि बहुत पहले से ही उन अंचलों में बस्तियाँ स्थापित की थी, वे भी कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने (जो कि इस प्रकार के स्थापत्य निर्माण के कौशल से अनभिज्ञ थे) यहाँ बस्ती स्थापित करने के लिए जंगल साफ करते समय इस प्राचीन स्थापत्य को देखा था । साथ ही यह भी प्रवाद है कि सिंहभूम के पूर्वांचल में भी सराकों ने ही प्रथम उपनिवेश स्थापित किया था । लगता है सराकों ने अपनी बस्तिया नदियों के किनारे-किनारे स्थापित की थी । शायद इसीलिए उनके मन्दिरों के ध्वंसावशेष दामोदर, कंसाई एवं अन्य नदियों के किनारे ही पाए जाते हैं। कंसाई नदी की तटभूमि पूराकीति का एक समृद्ध क्षेत्र है । "In the district of Manbhoom, we find two distinct-types of architectural remains. Those that appear most ancient and are said by the people to be so are ascribed, traditionally and no doubt correctly to a race called variously Serap, Serab, Serak, Srawaka, who were probably the earliest Aryan colonists in this part of India; as even the Bhumij, who of the existing population claim to be the oldest settlers and whose ancestors had not the skill to construct such monuments declare that the first settlers of their race found these ruins in the forests that they cleared. We have the same tradition of early settlements for the