SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ जैनत्व जागरण...... Srawaks in the eastern parts of Singhbhoom. Which were broken up by the warlike Hos or Lurks Coles. The Srawaks appear to have colonized along the banks of rivers and we find their temple ruins on the banks of the Damodar, the Cossai and other streams. The Cossai is rich in architectural remains. आगे उन्होंने लिखा है मैंने वहाँ की मूर्तियाँ देखी हैं एवं इस विषय में मैं निस्सन्देह भी हूँ कि ये सब पशु लञ्छन सह जैन तीर्थकरों की ही मूर्तियाँ हैं । मैंने जितने भी मन्दिरों का विवरण दिया है वे सब सम्भवत वीर या महावीर जिस पथ से गुजरे थे उसी पथ के किनारे उनके पदचिन्हों को अनुसरण कर उन लोगों द्वारा निर्मित हैं जिन्हें कि उन्होंने अपना अनुयायी बताया था । ये सभी मन्दिर समय या सम्मेत शिखर की परिधि में ही है । इस सम्मेत शिखर के विषय में कहा जाता है कि वीर निर्वाण के २३० वर्ष पूर्व जिन पार्श्व या पार्श्वनाथ ने सांसारिक बन्धनों को क्षय कर इसी स्थान पर निर्वाण प्राप्त किया था । अतः लगता है जंगलों के मध्य, नदियों के किनारे-किनारे महावीर के आविर्भाव के भी बहुत पहले जिन्होंने यहाँ बस्तियाँ स्थापित की थीं, जिनके मध्य महावीर ने धर्म का प्रचार किया था वे जैन धर्म के तत्वों से अपरिचित नहीं थे । भूमिज, हो या लुरका कोलों के मध्य प्रचलित प्रवादानुसार भी सराकों ने ही इस अंचल को सर्वप्रथम अपने अधिकार में लिया था । पाश्चात्य जगत के विद्वानों जिनमें कर्नल डाल्टन, वैलेनटाइन वॉल, मिस्टरजी, कूपलैण्ड, मिस्टर हरबर्ट रिसले आदि प्रमुख है उन्होंने सराक जाति के विषय में जो परिचय दिया है वर्तमान काल में सराकों से हमारा यही परिचय है । यह गम्भीर चिन्तन का विषय है कि जिस जाति का चरित्र इतना उन्नत है, जिनकी एक विशिष्ट संस्कृति है उनके विषय में आज तक हम अज्ञान क्यों बने हुए है ? बहुत कम लोग ही जानते हैं कि प्राचीन सभ्यता के धारक और वाहक सराक जाति थी और इतना ही नहीं ब्राह्मण धर्म के भयंकर उत्पीड़न से स्वयं को बचाने के लिये इनको अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा । हीन आजीविका में नियुक्त होना पड़ा । इतना होने पर भी इन लोगों ने अपना निजी वैशिष्ट्य पूर्णतया नष्ट नहीं किया ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy