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________________ जैनत्व जागरण..... १८९ मांगो वह देने के लिए तैयार हुँ । सराक श्रावकने कहां बेटा ! और तो कुछ नही चाहिए। यदि आज आप कुछ देना ही चाहते हो तो हमारी जाति की उचित मर्यादा चाहिए । आज तक नीच जाति कहकर हमारी उपेक्षा की गई है। राजाने तुरन्त कहाँ "मोरा पुरोहित तोरा पुरोहित" जो राज परिवार का पुरोहित वोही तेरा पुरोहित है । उस दिनसे सराको के क्रिया अनुष्ठानमें "आडता" गांवके दुवे ब्राह्मण गण आने लगे थे । उन ब्राह्मणोंके संसर्ग से सराकोमें हिन्दुत्वकी भावना दृढ़ होती गई, और कुछ वैष्णव देवीयोंकी पूजा सराकों के घर अनुष्ठित होने लगी। फिर भी आज पर्यन्त सराकगण वैष्णव धर्म को पूर्णतया ग्रहण न कर पाये । इंद, वांदना, छातापर्व, एवं बलिपर्व आदिसे आज भी सराक भाई दूर रहते है। . सराक एवं सम्मेतशिखर सम्मेतशिखर (पारसनाथ) में एक समय सराकों का आधिपत्य था। एक समयमें उनकी देखरेख से सम्मेतशिखर तीर्थ का पूर्ण विकास हुआ था । जनश्रुति हैं सम्मेतशिखर की रक्षाके लिये सराको के कइ युवान शहीद भी हुए थे । शिखर भूमिको छोडकर श्रावक-वर्ग भले दूर चले गये थे, मगर सम्मेतशिखर को अपने हृदय से दूर न रखा था । जब कभी शिखरजी पर आफत आती थी तब दौड आते थे। सराकगण वैष्णव, ब्राह्मणोकी चालमें आकर वैष्णव सम्प्रदाय में समाविष्ट हो गये थे। प्राक्कथन से इसका खुलासा हो ही गया है । अर्वाचीन काल में आज से आनुमानिक ७०-८० वर्ष पूर्व पू. मंगल विजयजी म.सा. एवं तत् शिष्य पू. प्रभाकर विजयजी म.सा. ने इन सराकों को पुनरूज्जीवित किया था । आज से लगभग ८० वर्ष पहले न्यायतीर्थ प.पू. मंगल विजयजी म.सा. एवं प.पू. प्रभाकर विजयजी म.सा. सम्मेतशिखर जीके दर्शनार्थ पधारे । पर्वत पर चढते समय पूज्य मंगल विजयजी महाराजने पू. प्रभाकर विजयजी से कहा भाई जिस भूमि पर सम्मेत शिखर पर्वत है, जहाँ बीस बीस तीर्थंकरोंने निर्वाण को प्राप्त किया है, वहाँ आज एक भी जैन नही है, ऐसे कैसे हो
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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