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________________ जैनत्व जागरण..... १८७ सराकजाति भी भाग लेती है। एक परम्परा जैनों की इस पर्वमें परिलक्षित होती है । आश्विन महीने में यानि नवरात्र तक सराकों अपने घरकी दीवार पर जातजात के चित्र आलेख्य करते है । जिनमे, नवपद, मंगल कलश, अष्टमंगल, नागपाश (धरणेन्द्र यंत्र) तीर्थंकरों के लांछन, तथा जैन शिल्पकलाके चित्र होते है । वर्तमान कालमें आयंबिल ओलीकी आराधना कहीं कहीं होती है । सराक भाई इस महीने में महापूजा रचाते थे । (महापूजा अष्टान्हिका के एक कर्तव्य है) हिन्दु धर्म के संस्पर्श में आने के बाद दुर्गा पूजा को महापूजा मानते है। कार्तिक : इस महीने में दीपोत्सव मनाया जाता है। महावीर स्वामी के निर्वाणके उपलक्ष में सराकगण अपने घर से शण लकडी की मशाल तैयार करके आबाल वृद्ध तलाव तक जाते है, और पुनः मशाल लेकर घर लौटते है । इस आने जाने के बीच इस पंक्तिको दोहराते है । इस पंक्ति को कहते है : "ईजंइ रे पिंजइ रे" यह मागधी भाषा का छंद है । "आराइअ" का यह कोई विकृत शब्द होना चाहिए । आज तक इस शब्द का किसीने अर्थ घटन करने का प्रयत्न नही किया है। इस महिनेमें और भी कुछ अनुष्ठान किये जाते है, जो वैष्णव धर्मकी परम्परा से आये हुए है। दीपावलीके समय अनेक सराकभाई दीपोत्सव मनाने के लिये पावापुरी में आज भी जाते है। दीपोत्सव के दूसरे तीसरे दिन “वांदना पर्व" भाई वांदना, गाई वांदनाका पर्व मनाया जाता है । मृगशीर्ष (अग्रहायण): इस महीनेमें लक्ष्मीपूजा, वन देवता, क्षेत्र देवता की पूजा सराकभाई अपने हाथों से करते है। पौष : अष्टमंगल के "वर्धमान" के आकार का एक मंगल चिन्ह बनाकर उसके ऊपरी भाग में अष्टमंगल के चिन्ह आलेख्य कर महीने तक घर पर रखते है, और शामको सांझी गाते है । मकर संक्रांति के दिन उस
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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