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जैनत्व जागरण......
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था । उसकी शादीके दिन जब वर शादी करने आ रहा था, तब उसकी रास्ते में हत्या हो गई थी। शादी नहीं हो पाने के कारण घरवालोंने अन्यत्र शादी करवाने का मन जाहिर किया । मगर भद्रावती (भादू) ने नकारात्मक जवाब देती हुई कहा मुझे कही शादी नहीं करनी है, सती होना है । पुनर्लग्न न कर उस राजकुमारी ने अपने भावी पति की चितामें आत्म विलोपन किया । यानि की सती हो गई । उस सतीकी स्मृतिमें हिन्दु जैनों में उस सती के गीत-संगीत गाये जाने लगे । सराकों का राजपरिवार सें अच्छा संबंध होने के नाते रात्रिजागरण में भादुकी स्मृति गीत गाये जाने लगे । गीत में कही भादु प्रसंग का वर्णन नहीं आता है । महापुरुषो के ही गीत है, जैसे तीर्थंकर, राम तथा कृष्णके उपदेश के गीत ।
जैन ग्रंथकार संघदासके "वसुदेव हिंडी" के चतुर्दश खंडमें जो रामायणका वर्णन है " पउम चरियं" में जिस तरह राम का वर्णन किया गया है वैसे वर्णन का भादु गीत में उल्लेख मिलता है । इससे सिद्ध होता है जैनों का “जागरण" पूर्व से होता आ रहा है । भादु (भद्रावती) की सती होने के बादसे उसमे नवीन रूप दिया गया है। आज भी " भादु जागरण" जैन जैनेत्तर में मनाया जाता है ।
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..The daughter of one Raja Nilmany Singhadev Sarma of Panchakot, on the day of her marrige the groom failed to arrive as he was killed on the way by dacoits, Bhadu would not marry any other suitable groom as she had already mentally offered herself to the man who was now dead. She ascended the funeral pray of her might have been husband and perished in flames, since then people have been worshipping her with songs and dances, in which man, woman and children took part on the last day of Bhadra (Middle of September)" (West-Bengal Distric Gazettes op. cit. P. 132)
आश्विनः नवरात्र, नवपदकी आराधना का अनुष्ठान मनाया जाता था । वर्तमान में बंगालमें दुर्गा ( अंबा माता) पूजा होती है, इस अनुष्ठान में