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जैनत्व जागरण......
जैन-धर्मके कुछ न कुछ ध्वंसावशेष मिले है । कहीं कहीं जैन मन्दिरके अस्तित्वके पास ही शिवमन्दिरके नमुने मिले है, अन्य किसी हिन्दु मन्दिरके अस्तित्व नही मिले है ।
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जैसे पाडा शहरमे एक उत्तुंग जैन मन्दिर है, उसके बगल में एक उत्तुंग हिन्दुमन्दिर भी है । तेतुलहीटी (थानापाडा ) के पास खंडहर है, जिसे देलभिटा कहते है । (देल-यांनेदेवल, भिटा यानी खंडहर ) वहाँ जैन - मूर्ति और शिवलिंग के अस्तित्व आज भी पडे है । केलाही (पाडा) गांवके नदीके तट पर एक जैन मन्दिर एवं एक हिन्दुमन्दिर (शिवमन्दिर) के अवशेष मिले है । उन अवशेषोमें से एक शिलालेख है । उस क्षेत्रके लोग या वहां जोभी देखने आये थे, उस शिलालेख को पढ़ नही पाये । वहाँ के लोगोंकी मान्यता है, कि उस शिलालेख को जो भी पढ़ लेगा उसके सामने पत्थर फट जायेगा और उसे गुप्त धन मिल जायेगा ।
हम ई.स. १९९३ - १९९४ की सालमें जंब बंगाल देशमें परिभ्रमण किये, तब उस गांवमें भी हमारे उपर गांवके लोगोको काफी आस्था है । गांववालेने हमे पत्थरकी महिमा शुनाकर शिलालेखका दर्शन करवाया मागधी, बंगला, समिश्रित उस शिलालेख हमने पढ़ा उसमे लिखा है, "बालुराम व्रजराज सराक देव कुलिका" । इस लेखसे अनुमान किया जा सकता है, कि प्राचीन कालमें बालुराम व्रजराज सराकके द्वारा जैन-देवकुलिका बनाई गई थी, और वह देवकुलिका किसी शासनदेवीकी थी । हमारे परिभ्रमणके समय हम जिन-जिन गावोंमें गये, वहां कुछ न कुछ जैन-धर्मके नमूने मिले है | कही मन्दिर का अवशेष, तो कही खंडित मूर्ति, कही कलश तो, कहीं कहीं स्थान आदिके अवशेष मिले है ।