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________________ जैनत्व जागरण..... १७७ तोर पर मनाई जाती है । वह दीपावलीकी रात्रिको ही मनाई जाती है । जैनकी १६ विद्यादेवीओमें काली, महाकाली का स्थान है । बंगालमें वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दूर्गापूजाको अपनी श्रेष्ठ पूजा मानकर महोत्सव मनाते है । जैनोमें उस दुर्गा माताको अंबा (अंबीका) माता कहते है, जो बावीशतम तीर्थंकरकी शासनदेवी कही जाती है। दोनो देवीमें एक रूपता है। सिंहवाहिणी, वर्षाधारिणी दुर्गा देवीको जैसे वैष्णव मानते है, जैन लोग भी इस मुद्राको मानते है । वैष्णव सम्प्रदायमें सर्पकी देवीको मनसा माता कहते है, जैनोमे सर्पदेवीको पद्मावती देवी कहते है । लक्ष्मी और सरस्वतीकी पूजाकी मान्यता जैन और हिन्दुधर्ममें पूर्ण रूप से प्रचलित है। सप्तदश शताब्दी पर्यन्त सराकगण जैनधर्मकी उपासना करते थे, किन्तु पंचकोटमें आनेके पश्चात् उनकी श्रद्धा-हिन्दुत्व भावापन्न हो गई थी । पंचकोटके अन्तर्गत एक-एक ग्रामोमे जैन-दर्शनके निदर्शन मिले है। इससे प्रमाणित होता है कि सराकोंकी हिन्दुत्वकी भावना १००-१५० वर्षके अन्दर पैदा हुई है। दयानंद सरस्वतीके "लोक प्रकाश" ग्रन्थसे प्राप्त जानकारीके अनुसार वैष्णव सम्प्रदायमें मूर्ति पूजाकी परम्परा ज्यादा दिनकी नही है । प्राचीन कालमें "शिवमन्दिर" हिन्दुओंने बनवाये थे, और उसमें मात्र शिवलिंगकी स्थापना की थी । दुसरे देव-देवीका मंदिर नही बनवाते थे, जब जिन जिन देवी देवताकी पूजाका समय आता है, तब उनकी मूर्ति बनाकर पूजा करते है। हिन्दु धर्ममें मूर्तिपूजाकी परम्परा जैन-धर्मसे आई है । आज भी पुरूलिया तथा धनबाद जिलेके क्षेत्रमें जो भी मूर्तियाँ मिलती है, वे सारी जैन मूर्तियाँ-या जैन-धर्म के शिल्पगत देव-देवीओंकी मूर्तियाँ मिली है। प्रायः पुरुलियाके प्रत्येक ग्रामोमें जैन-धर्मके निदर्शन मिलते है। जिन-जिन ग्रामोमें श्रावक/सराकलोगोका वसवाट था, वहां ग्रामस्थान (गरमस्थान) एक जैन-मन्दिर होता था। पूरे गांवके जैन-अजैन सभी वहां दर्शनार्थ जाया करते थे । और उस मन्दिरको ग्रामथान (गरमथान) कहते थे। हमारी मान्यता है, कि गांवके अमुकक्षेत्रको गांवके लोग ग्रामधान कहते होंगे, जहा जैन एवं इतर मंदिर होता था, क्योंकि हम जहांभी गये है, वहां
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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