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जैनत्व जागरण.....
जैनपाडा से झाँपड़ा
झाँपड़ा शब्द संभवतः " जैनपाड़ा" शब्द का विकृत रुप है । पाड़ा यानि-गली वहाँ ९० प्रतिशत सराकों का वास होने से गांवका नाम “जैनपाड़ा” रखा गया था । अंग्रेज लोग उसे जैनपाडाको झैनपाडा कहते, या झाँनपाडा कहते थे । भारत की आजादी के बाद से उस गांवका नाम झाँपड़ा ऐसा रूढ शब्द बन गया है । जैनपाड़ा नामको चरितार्थ करने के लिए झाँपड़ा ‘केशरिया आदीश्वर' जैन देरासर का निर्माण हुआ है । जो पुरुलिया जिले का सर्वप्रथम एवं भव्य श्वेताम्बर जैन मन्दिर है । जिसकी प्रतिष्ठा २८-२-९४ ई.स. को की गई थी । इस भव्य जिनालय का निर्माण प. पू. मुक्तिप्रभ मुनि एवं विनीतप्रभ मुनि की प्रेरणा से हुआ था । जिसमें (२००००) बीस हजार सराक भाई सम्मिलित हुए थे ।
सराक समाज के बीच जैन मुनि दीक्षा सर्व प्रथम इसी झाँपड़ा में हुई थी । ता. २७-२ - ९४ ई.स.)
सराक समाज के बीच मुनि महात्मा का प्रथम चातुर्मास इसी गांव में हुआ था । (ई.स. १९९४ वि. सा. - २०५०) चैत्री ओली एवं अष्टान्हिका महोत्सव भी सर्वप्रथम बार हुआ था ।
उन्मार्ग से मार्ग की ओर
ई. टी. डलटन साहेबके अनुसार ई. स. १८६३ खीष्टाब्द में सराकों ने अपने आपको जैन बताया है । पर उस समय जैन धर्म के अन्दर ( श्रावकों में) हिन्दुओं के आचार-आचरण कतई प्रवेश हो चुके थे । ऐसा होना स्वाभाविक है, तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को जैनलोग कहाँ अस्वीकार करते है ! बंगालमें काली, महाकाली, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, मनसा आदि देवीओंकी हिन्दुलोग पूजा करते है । जैनो में भी इन देवियों की पूजी की जाती है । पूजापार्वणकी दृष्टि से विधि विधानमें भिन्नता नजर आ सकती है, मगर देव - देवीके स्वरूप तो लगभग वैसे ही है ।
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जैन और हिन्दु देव देवीओंकी एक रूपता
बंगदेश में महाकाली और कालिदेवीकी पूजा धूम धामपूर्वक विशेष