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जैनत्व जागरण.......
१०. उत्तर - पूर्व में जैन धर्म
ईसा की सातवीं शताब्दी के द्वितीय चरण के प्रारम्भ में बौद्ध चीनी यात्री ह्युंसांग ने भारतवर्ष में आकर इस के भिन्न भिन्न प्रदेशो में चौदह वर्ष (ई.स. ६३० से ६४४) तक परिभ्रमण किया था । उस के द्वारा लिखित विवरण से उस समय के भारत वर्ष के धर्म-संप्रदायो के विषय में अनेक बातें जानी जा सकती है । पूर्व भारतवर्ष के धर्म सम्प्रदायों की अवस्था सम्बन्धी उसने जो कुछ लिखा है यहां उस के प्रधान विवरण को हम संक्षेप से लिखते है | १. वैशाली यह राज्य वर्तमान बिहार के उत्तर प्रदेश में तिरहुत विभाग में अवस्थित था । मुज़फ्फरपुर जिल्ले के हाजीपुर महकमे के अन्तर्गत वर्तमान बेसार नामक गांव में प्राचीन वैशाली नगरी के ध्वंसावशेष मौजूद है । ह्यूसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी में यहां के वासी विशेष धर्म-परायण थे तथा बौद्ध और अबौद्ध सब एक साथ मिलजुल कर वास करते थे । यहा पर बौद्धों की संस्थाए (संघाराम मन्दिर आदि) कई सो की संख्या में थी । परन्तु उस समय तीन चार संस्थाओ के अतिरिक्त बाकी सब ध्वंस हो चुकी थी । तथा बौद्ध भिक्षुओ की संख्या भी एकदम कम थी । . किन्तु देवमन्दिरों की अवस्था इन की अपेक्षा अच्छी थी । और इन की संख्या भी कम न थी ( there are some tens of Deva temples) पौराणिक ब्राह्मणधर्म के बहुत संप्रदाय थे किन्तु निर्ग्रथों (अर्थात् जैनों) की संख्या ही सब से अधिक थी ।
२. मगध (वर्तमान पटना और गया जिला) यहां के वासी बौद्धधर्म को मानने वाले थे । यहां पर बौद्धों के पचास संघाराम ( बौद्ध भिक्षु के रहने के स्थान) थे, एवं उनमें दस हजार बौद्ध भिक्षु वास करते थे । वे भिक्षु अधिकतर महायानपंथी (बौद्धों के एक संप्रदाय को मानने वाले ) थे । देवमन्दिरों तथा पौराणिक ब्राह्मण धर्मावलम्बियों की संख्या कम थी । मगध में जैन संप्रदाय के सम्बन्ध में ह्यूसांग ने स्पष्टतया कुछ भी उल्लेख नहीं किया। किन्तु उस के विवरण से ही ज्ञात होता है कि प्राचीन राजगृह तता