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________________ जैनत्व जागरण....... १४९ गिरिब्रज (पटना जिला अन्तर्गत आधुनिक राजगिरि) नगर के समीप विपुल नामक पर्वत पर एक स्तूप था एवं यहां पर बहुत निर्ग्रथ (जैन साधु) वास करते थे तथा तपस्यादि करते थे । वे लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूर्याभिमुख होकर धर्म साधना करते थे । (Beal II 158 Walters II 154, 155) इस के अतिरिक्त नालंदा में भी ( पटना जिले में बिहार महकमे के अन्तर्गत बड़गांव नामक स्थान) निर्ग्रथो का आवागमन था । ऐसा अनुमान किया जा सकता है । (Beal II 168) ३. ईरण पर्वत-(मुंगेर जिला) मगध से पूर्व दिशा की तरफ़ एक बड़े भारी आरण्य को पार कर ह्यूसांग ने लगभग ई. स. ६३८ को ईरण पर्वत नामक देश में प्रवेश किया (Walter II, 178 and 335) यहां पर इस ने दस बारह बौद्ध संघाराम तथा चार हज़ार से अधिक बौद्ध भिक्षु देखे । इन में अधिकांश हीनयान संप्रदाय के समिति शाखा के अनुयायी थे । पौराणिक ब्राह्मण धर्म के विभिन्न संप्रदायो के बारह देवमन्दिर भी उसने देखे थे । यहाँ पर ह्युंसांग ने एक वर्ष तक वास किया था । 1 ४. चम्पा (भागलपुर जिला ) ईरण पर्वत से यह चम्पारण देश में परमात्मा की मूर्ति निर्माण कर प्रतिष्ठा की तत्पश्चात् इस मूर्ति को कल्पवृक्ष की पुष्पमालाओं से पूजन कर चन्दन की पेटी में बन्द कर दिया । और समुद्र में जाते हुए एक जहाज में (आकाश मण्डल से) डाल दिया । जब यह जहाज सिधु सौवीर देश के वीतभयपट्टन नामक नगर में पहुंचा तब वहां के राजा उदायी की रानी प्रभावती ( राजा चेटक की पुत्री तथा भगवान् महावीर की मौसी जो कि जैनधर्म की दृढ उपासिका - श्राविका थी) ने बड़े भावभक्ति से अर्हन् प्रभु की पूजा-अर्चा आदि करके उस पेटी को खोला । विद्युन्माली देव द्वारा निर्मित और कल्पवृक्ष की फूलमालाओं से पूजित इस जीवितस्वामी की मूर्ति को नया जैनमंदिर बनवाकर उस मे स्थापित किया और उस मूर्ति की स्वयं निरंतर तीनों समय (प्रात:, मध्याह्न तथा सायं) पूजन करने लगी । ऐसी अनेक जैन तीर्थंकरो की "जीवित स्वामी" अवस्था की अनेक
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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