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जैनत्व जागरण.......
उन्होंने अपने अर्ध कथानक में किया है ।
संघदास रचित वसुदेव हिंडी नामक ग्रन्थ प्राचीन इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को परिलक्षित करता है। कृष्ण के पिता वसुदेव अपूर्व सुन्दर थे उनके रूप पर स्त्रियां मुग्ध हो जाती थी अत: उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिये गृह बंदी बना लिया गया । वसुदेव बंदी गृह से निकल गये और विभिन्न देशों में भ्रमण करते हुए वहाँ की श्रेष्ठ सुन्दरियों और राज्य कन्याओं से विवाह किया । एक बार राजा कपिल के पुत्र अंशुमन जो उनका साला भी था वह उनको मलयदेश ले जाना चाहा लेकिन रास्ता भूल जाने के कारण वे विपरीत दिशा में चले गये और पुण्ड्र राजा की राजधानी में पहुँच गये। राजा पुण्ड्र के पिता का नाम सुसेन था जिन्होंने पुण्ड्र को सिंहासन देकर सत्य रक्षित नामक मुनि से निर्ग्रन्थ धर्म में दीक्षा ली। रानी वसुमति ने भी प्रव्रज्या ग्रहण की और आर्या संघ की नेतृ बन गयी । राजा पुण्ड्र के पहले कोई सन्तान नहीं थी परन्तु बाद में एक कन्या का जन्म हुआ जिसे पुत्र बताकर प्रचार किया । एक उत्सव में वसुदेव का उससे परिचय हुआ जो आगे चलकर विवाह बन्धन में परिणित हो गया और इन्हीं की सन्तान महापुण्ड्र के नाम से प्रसिद्ध हुई । यहाँ के लोगों के विषय में कथानक में लिखा है कि यहाँ के श्रेष्ठीगण व्यापार के लिये सुदूर विदेशों में जाते थे । स्थलपथ से ताम्रलिप्त जाते और वहाँ से समुद्री यात्रा करते थे । लेखक के वर्णन से इस शहर के विषय में काफी जानकारी मिलती है । जिसके अनुसार यह शहर मगध के दक्षिण में तथा गया के विपरीत दिशा में था और ताम्रलिप्त और मगध दोनों स्थानों से स्थल पथ द्वारा युक्त अर्थात् राजगृह और ताम्रलिप्त को मिलाने वाले वाणिज्य पथ पर अवस्थित एक महत्वपूर्ण वाणिज्य केन्द्र था ।
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राजा पुण्ड्र के पिता सुसेन और माँ वसुमती का निर्ग्रन्थ धर्म दीक्षा लेना यह प्रमाणित करता है कि यह श्रमण संस्कृति का प्रभावित अंचल था । इस राज्य से सम्मेत शिखर अधिक दूर नहीं था ।
राजा पुण्डु के बाद उनका दोहित्र यहाँ का राजा बना और वह भी वासुदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ । पाण्ड्रा गाँव में इस वासुदेव के स्मारक