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जैनत्व जागरण.....
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आज भी नागकुमार साँप के रूप में प्रभाव दिखाते हैं । जहाँ अमावस्या की रात्रि को तेल रहित जल से भरे हुए दीपक जलते हैं। आगे लिखते हैं कि इस नगरी में कार्तिक अमावस्या की रात्रि में भगवान के निर्वाण स्थान पर मिथ्यादृष्टि लोग भी वीर स्तूप स्थान पर स्थापित नागमण्डप में आज भी चातुर्वाणिक लोग यात्रा महोत्सव करते हैं उसी एक रात्रि में देवानुभाव से कुएँ से लाए हुए जल से पूर्ण सराव में तेल बिना दीपक प्रज्वलित होता है । "
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पावापुरी का गाँव मंदिर भगवान का निर्वाण स्थान है । यहाँ के मंदिर को देखने से स्पष्ट परिलक्षित होता है कि प्राचीन मंदिर के ऊपर ही नये मंदिर का निर्माण हुआ है । कवि विवेकहंस रचित श्री जिनवर्द्धन सूरि चौपाई की रचना जो संवत् १४८९ में लिखी गई है उसमें जैनपुर के ठाकुर जिनदास (महत्तियाण) द्वारा श्री जिनवर्द्धनसूरिजी को गुजरात से बुलाकर पाँच वर्ष पर्यन्त पूर्व देश में विहार कराने का विवरण मिलता है । इस अरसे में उपधान, प्रतिष्ठा, आदि अनेकों धर्मकृत्य हुए । सम्वत् १४६७ में राजगृहादि यात्रार्थ विशाल संघ निकला जिसमें ५२ संघपति थे । चार हजार पालकियाँ और घोड़े, बेलों की संख्या अपार थी । निम्नोक्त गाथा में पावापुरी यात्रा का उल्लेख द्रष्टव्य है
पावापुर नालिंदा गामि, कुंडगामि कायंदी ठामि ।
वीर जिणेसर नयर विहारि, जिणवर वन्द सवि विस्तारि ॥
सन् १५६५ ई. में कमल ग्रन्थ कृत चतुर्विशन्ति जिन तीर्थमाला में नालन्दा बड़गांव में १६ जिनमंदिरों के होने का उल्लेख मिलता है । सन् १६०९ ई. में पुण्यसागर लिखित सम्मेद शिखर तीर्थमाला में राजगृह, पावापुरी तथा नालन्दा के वर्णन के बाद बिहार शरीफ में ५८ प्रतिमाओं का उल्लेख किया गया है तथा यहाँ पर महत्तियाण वंशी श्रावकों की एक बड़ी बस्ती थी इसका भी प्रमाण मिलता है ।
सन् १६६१ में आगरा के हीरानंद मुकीम ने सम्मेतशिखर का संघ निकाला था जिसका वर्णन वीर विजय कृत चैत्य परिपाटी में मिलता है। इस संघ के साथ प्रसिद्ध कवि बनारसी दास जी भी थे, जिसका उल्लेख