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________________ १४२ जैनत्व जागरण..... ___-Jainism and Jain relics in Bihar, S.P. Singh. मुरुण्ड राजाओं का वर्णन समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तम्भ लेख में मिलता है जिसमें मुरुण्ड राजाओं के लिये देव पुत्र लिखा गया है । टोलमी ने मुरुण्डों को Moroundai कहा हैं । इनका राज्य गंगरादी की पश्चिमी सीमा पर बताया है । ऐसा प्रतीत होता है कि इनके अधीन उत्तर बिहार से लेकर पूरा गंगरादी क्षेत्र था । लगभग दूसरी शताब्दी में आचार्य पादलिप्त सूरिजी आकाशगामिनी विद्या द्वारा सम्मेत शिखर की तीर्थ यात्रा करने आते थे। आचार्य श्री बप्प भट्ट सरि जी ने भी यहाँ की यात्रा की थी। तेरहवीं सदी के आचार्य देवेन्द्र सूरिजी द्वारा रचित बन्दास्मृति में यहाँ के जिनालयों और प्रतिमाओं का उल्लेख मिलता है । कुम्भारिया तीर्थ से प्राप्त एक शिलालेख में शरण देव के पुत्र वीरचरण द्वारा आचार्य परमानन्दसूरिजी के हाथों के द्वारा सम्भवत् १३४५ में सम्मेत शिखर पर प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख मिलता है। सन् १६४९ में अकबर बादशाह ने जगत् गुरु हीर विजयसूरिजी को सम्मेत शिखर क्षेत्र भेंट कर विज्ञप्ति दी थी । सन् १८०९ ई. में मुर्शिदाबाद के जगत सेठ महताबराय को दिल्ली के बादशाह अहमदबाद ने उनके कार्यों से प्रसन्न होकर उन्हें मधुबन कोठी तथा पार्श्वनाथ पहाड़ का मालिकाना दिया था । 'भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास' में उल्लेख है कि विक्रम संवत् २५० के लगभग आचार्य कक्कसूरि जी चतुर्थ के सानिध्य में संघपति श्रेष्ठीवर्य महादेव ने सम्मेत शिखर के लिये संघ निकाला । सम्मेत शिखर पहुँचकर सूरिजी ने पूर्वी भारत में विहार करने का निश्चय किया और पाँच सौ साधुओं को अपने पास रखकर बाकी साधुओं को संघ के साथ वापस भेज दिया । सूरिजी ने तीन सौ साधुओं में से पचास-पचास साधुओं की छः वर्ग बनाये और पूर्व धरा के प्रत्येक नगर में विहार करने का आदेश दिया और दो सौ साधुओं को अपने पास रखा । इन लोगों ने राजगृह, चम्पा, वैशाली, बंगदेश, कलिंग तक विहार किया तथा जैन धर्म का प्रचार किया । अपना अन्तिम समय निकट जानकर वे सम्मेत शिखर पर सत्ताईस दिन के अनशन पूर्वक समाधि के साथ प्रयाण कर गये ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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