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जैनत्व जागरण.....
स्वर्णगिरि पर जमे प्रतिमाएं है उनमें कुछ गुप्तकालीन और कुछ उससे पूर्व की है। विविध तीर्थ कल्प में राजगृह में छत्तीस हजार घरों के होने का उल्लेख है।
राजगृही के इतिहास में गुणशील चैत्य का वर्णन आता है । यहाँ पर भगवान महावीर के कई बार आने का उल्लेख जैन साहित्य में मिलता है। गुणशील चैत्य का अपभ्रंश आज का गुणायाजी माना जाता है । इसे गौतम स्वामी का केवलज्ञान स्थान मानते हैं । यहाँ भी सरोवर के मध्य बना मंदिर पावापुरी के जलमंदिर का स्मरण कराता है। पावापुरी से यह स्थान २३ किलोमीटर दूर पर स्थित है। . .
गया से उणतीस किलोमीटर दूर हजारी बाग जिले में कुलुआ पहाड़ है यहाँ सैकड़ों जैन मंदिरों के भग्नावेश पड़े हुए है। यह तीर्थंकर शीतलनाथ का जन्म स्थान है । डॉ. स्टेन के अनुसार इस पर्वत के प्राचीन अवशेष जैन है । उन्होंने लिखा है कि गुफा के भीतर पार्श्वनाथ की भव्य मूर्ति सुव्यवस्थित ढंग से निर्मित है और उसके सिर पर सर्प फण है । इससे सटे हुए पश्चिम दिशा में एक छोटी गुफा में जिन मूर्ति स्थापित है जिसके नीचे सिंह प्रतीक के रूप में है।
अजातशत्रु कोणिक के समय मगध की राजधानी राजगृही से चम्पा में स्थित हो गई। यह बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी की पंचकल्याणक भूमि है। जैन ग्रन्थों में यहाँ स्थित पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन मिलता है । From the Uvasagadasao and the Antagadadasao we learn that there was a temple called Punnabhadda (which we have dealt with in the following lines) at Campa in the time of Sudharman, one of the eleven disciples of Mahavira, who succeeded him as the head of the Jaina sect after his death. It is said that the town was visited by Sudharman, at the time of Konika Ajatasatru who went there bare-footed to see the Ganadhara outside the city which was again visited by Sudharman's successors.
उत्तराध्ययन में वर्णन है कि चम्पा नगरी में पालित नाम का वैश्य