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जैनत्व जागरण.....
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श्रावक रहता था जो भगवान महावीर का अनुयायी था । वह जहजा से व्यापार करता हुआ पिहुड नगर में गया । वहाँ विवाह के बाद अपनी स्त्री को लेकर वापस आते समय उसके पुत्र हुआ जिसका नाम समुद्र में को लेकर वापस आते समय उसके पुत्र हुआ जिसका नाम समुद्र जन्म होने के कारण उसका नाम समुद्रपाल रखा । युवावस्था प्राप्त होने पर एक बार भवन की खिड़की पर बैठे समुद्रपाल ने एक अपराधी को मृत्यु चिन्हों से युक्त वध स्थान पर ले जाते हुए देखा । उसे देखकर उन्हें बोध हुआ कि अशुभ कर्मों का अन्तिम फल पापरूप यह दिखाई दे रहा है और वह माता पिता से पूछकर प्रव्रज्या लेकर मुनि बन गये और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांच महाव्रतों को स्वीकार कर इनका पालन करने लगे । अनेक परिषहों को जीतकर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष को प्राप्त हुए ।
बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी की पंच कल्याणक भूमि चम्पापुरी में सुभद्रा सती ने तीन पाषाणमय कपाट को अपने शील द्वारा कच्चे सूततन्तु-वेष्टित चलनी से कुए का जल निकालकर उससे सिंचित कर उद्घाटित किया था ।
यहाँ के दधिवाहन राजा अपनी रानी पद्मावती के साथ उसका दोहद पूर्ण करने के लिए हाथी पर आरूढ़ होकर अरण्य-विहार करने गये । हाथी के न रुकने पर अरण्य में राजा वृक्ष की शाखा पकड़कर उतर गया। हाथी आगे चला गया और राजा अपने नगर में आ गया। रानी पद्मावती असमर्थता से उतर न सकी और उस पर चढ़ी हुई अरण्य में रह गई । हथिनी से उतर कर अरण्य में ही पुत्र-प्रसव किया, वह पुत्र करकण्डु नामक राजा बन प्रत्येक बुद्ध हुआ ।
उधर दधिवाहन राजा की पुत्री वसुमती (चंदनबाला) ने जन्म लिया, जिसने भगवान महावीर स्वामी को कौशाम्बी में सूप के कोने में रहे हुए उड़द के बाकुले देकर पाँच दिन कम छ: मासोपवास का पारणा द्रव्य क्षेत्र काल भाव अभिग्रह पूर्ण होने पर कराया ।
चम्पा एवं पृष्ठचम्पा में प्रभु महावीर ने तीन वर्षाकाल विताए, उनके