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________________ जैनत्व जागरण...... १२४ सुबुद्धिराज, हेमतिलकगणि, पुण्यकीर्तिगणि, रत्नमन्दिर मुनि सहित श्री बड़ागाँव (नालंदा) में विचरे थे । वहाँ के ठक्कर रत्नपाल सा. चाहड़ प्रधान श्रावक प्रेषित भाई हेमराज वांचू श्रावक युक्तं सपरिवार सा. बोहित्थ पुत्र मूलदेव श्रावक ने श्री कौशाम्बी, वाराणसी, काकन्दी, राजगृह, पावापुरी, नालंदा, क्षत्रियकुण्डग्राम, अयोध्या, रत्नपुरादि नगरों में जिन जन्मादि पवित्र तीर्थों की यात्रा की । सं. १४३१ में अयोध्या स्थित श्री लोकहिताचार्य के प्रति अणहिलपुर से श्री जिनोदयसूरि प्रेषित विज्ञप्ति महालेख से विदित होता है कि लोकहिताचार्यजी इत: पूर्व मंत्रिदिलीय वंशोद्भव ठ. चन्द्रागज सुश्रावक राजदेव आदि के निवेदन से विहार व राजगृह में विचरे थे उस समय वहाँ की नये जिन प्रासादों का निर्माण हुआ था । सूरि जी वहाँ से ब्राह्मणकुंड व क्षत्रियकुण्ड जाकर यात्रा कर आये और वापस राजगृह आकर विपुलाचल व वैभारगिरि पर बिम्बादि की प्रतिष्ठा करवाई थी । सं. १४८९ मं रचित श्री जिनवर्द्धनसूरि रास में उनके पाँच वर्ष पर्यन्त पूर्व देश में विचरण कर धर्म प्रभावना करने का उल्लेख है, जिसमें पावापुरी, नालन्दा, कुण्डग्राम, काकन्दी यात्रा का भी वर्णन है । श्री जिनवर्द्धनसूरिजी ने स्वयं सन् १४६७ में पूर्व देश चैत्यपरिपाटी की रचना की है जिसमें ब्राह्मणकुण्ड, क्षत्रियकुण्ड और काकन्दी की यात्रा करने का उल्लेख किया है पावापुरि नालिंदा गामि, कुंडगामि कायंदीठामि वीर जिणेसर नयर विहारि, जिणवर वंदइ सवि विस्तारि सन् १४६१-८६ के बीच श्री जिनवर्द्धनसूरि कृत पूरब देश चैत्य परिपाटी स्तवन में लिखा है "सिद्ध गुणराय सिद्धत्थ कुलमंडणं, रुद्ददालिद्द दोहग्गदुह खंडणं । बंभणकुंडपुरि थुणउ जण रंजणं, खित्तियाकुँड गांमंमि वीरंजिणं ॥२॥" सुप्रसिद्ध विद्वान जयसागरोपाध्याय ने सं. १५२४ में राजगृह में प्रतिष्ठादि कार्य कराये जिनके अभिलेख विद्यमान है उन्होंने वहाँ से जाकर क्षत्रियकुण्ड
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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