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जैनत्व जागरण.....
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थी तो वहाँ की धर्मशाला में भगवान महावीर की माता त्रिशला की मूर्ति, जिनके गोद में भगवान महावीर बालक रूप में दिखाये गये थे, उस पर प्राचीन लिपि का लेख लिखा हुआ था, हमने देखी थी । खेद है कि वह मूर्ति सुरक्षित नहीं रह सकी, पर उस पर खुदा हुआ लेख, जो हमने स्वयं देखा था, गुप्तकालीन लिपि का था।" उन्होंने वर्तमान जन्मस्थान के मंदिर से दो मील दूर लोधापानी में जंगल-झाड़ी के बीच प्राचीन खंडहर भी देखे थे।
"लछवाड़ के श्री नरेन्द्रचंद मिश्र लिखते हैं- मैं क्षत्रियकुण्ड के सम्बन्ध में एक प्रामाणिक इतिहास ग्रन्थ प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कल्पसूत्र में उल्लिखित क्षत्रियकुण्ड से सम्बन्धित स्थानों की प्रामाणिकता उनके शोधपूर्ण निरीक्षण से आंकी जा सकती है। वे सभी स्थल अपने उसी नाम पर तथा कतिपय यत्किचित अपभ्रंश के साथ अपने में तीन हजार वर्षों की गरिमा निहित किए है । क्षत्रियकुण्ड के विस्तृत भूभाग में यत्र-तत्र मिट्टी के बड़े-बड़े स्तूपों का अगर उत्खनन हो तो प्रामाणिक इतिहास लेखन की बहुत सामग्री मिल सकती है । उदाहरण स्वरूप एक स्तूप से अनायास भगवान महावीर की मिट्टी की मूर्ति मिली है जो मेरे पास सुरक्षित है जिस पर अस्पष्ट अज्ञात लिपि भी है।"
(भगवान महावीर का जन्म स्थान क्षत्रियकुण्ड-भंवरलाल नाहटा)
वर्तमान क्षत्रियकुण्ड अति प्राचीन स्थान है । कुण्डघाट पर नदी के दोनों तरफ दो प्राचीन मन्दिर है एवं पहाड़ी पार करने पर जन्मस्थान का मन्दिर है । जहाँ सिद्धार्थ राजा का महल था, प्राचीनकाल में क्षत्रियकुण्ड की यात्रा के लिए यात्री संघ समय-समय पर जाते रहते थे । इस प्रदेश में निवास करने वाली 'महत्तियाण' जैन जाति इन तीर्थों की देख-रेख करती थी।
युगप्रधानाचार्य गुर्वावली एक प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ है जिसमें चौदहवीं शताब्दी तक की घटनाएं लिखी हुई मिलती है, उसमें लिखा है कि सं. १३५२ में श्री जिनचन्द्रसूरिजी के उपदेश से वाचक राजशेखर,