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जैनत्व जागरण.......
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में जैन श्रमणों के गण, शाखा और कुलों की एक सूची मिलती है । इससे ज्ञात होता है कि व्याघ्रापत्य गौत्र के सुप्रतिबुद्ध काकन्दक ने सुस्थित कोटिक के साथ कोटिक गण नामक जैन संघ की स्थापना की थी जिसकी चार शाखाएं थी । वशिष्ठ गोत्र के मुनि गुप्त काकन्दक ने मानव गण नामक एक दूसरे जैन संघ की स्थापना की थी । उसकी भी चार शाखाएं थी । भारद्वाज गोत्र के भद्रयशस् ने उडुवाटिक नामक गण की स्थापना की थी जिसकी चम्मिज्जिया (चम्पियिका), भद्दिज्जिया (भद्रियिक), काकन्दिया (काकन्दिका), और मेहलिज्जिया ( मेखलियाका ) नामक चार शाखाएं थी । इन शाखाओं के नाम जनपदों के नाम पर दिये गये है ।
मुंगेर के जैन तीर्थ
रामरघुवीर । दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ का जन्म हजारीबाग स्थित कलुहा पहाड़ी के पास हुआ । बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रतस्वामी का जन्म स्थान राजगृह था । भगवती सूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र से यह पता चलता है कि मगध में तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का काफी प्रभाव था । भगवान महावीर के परिवारजन भी पार्श्वनाथ मत के अनुयायी थे । उनके पश्चात् महावीर के क्रियाकलापों का भी मुख्य केन्द्र मगध रहा । भगवान पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म का प्रतिपादन किया था । भगवान महावीर ने इसमें ब्रह्मचर्य को शामिल कर पंच महाव्रतों का प्रतिपादन किया था । साधना और तपस्या का यह प्रयोग इसी मगध की भूमि पर हुआ था । भगवान महावीर के उपदेश भगवान महावीर के उपदेश अर्द्धमागधी में हुए जो यहाँ की प्रमुख भाषा थी । ज्यादातर इतिहासविदों का मानना है कि महावीर का जन्म स्थान मगध के जमुई के लछवाड़ में हुआ था। वहाँ के गाँव के नाम जन संघ डिही (जैन संघ) आधारज डीही (आचार्य संघ ) आदि इसकी पुष्टि करते हैं । लछवाड़ के पास महादेव सिमरिया में पाँच जिनमंदिर थे जिनकी मूर्तियाँ तालाब में डाल दी गयी और उन्हें शैव मंदिरों में परिवर्तित किया गया । लछवाड़ के मंदिर में जो प्रतिमा प्रतिष्ठित है वह गुप्तकाल से भी प्राचीन प्रतीत होती है । श्री अगरचंद नाहटा ने इसे पन्द्रह सौ वर्ष प्राचीन बताया है । उन्होंने लिखा है- " चालीस वर्ष पूर्व जब हमने प्रथम बार क्षत्रिय कुंड की यात्रा की
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