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________________ जैनत्व जागरण....... ११४ विषय में यथातथ्य जानते थे और सुना भी है अतः कृपा कर बताइए ? जवाब में सुधर्मा स्वामी जी ने कहा- "हे जम्बू, भगवान महावीर स्वामी संसारी जीवों के दुःखों को जानने में कुशल थे । वे महायशस्वी भगवान, अनन्त ज्ञानी, अनन्त दर्शी और महान ऋषि थे । उनको अर्हन्त दशा में सूक्ष्म पदार्थ भी आँखों के समान देखने वाला जानो और उनके धर्म तथा संयम की दृढ़ता को विचारो ।” "उन केवलज्ञानी भगवान ने ऊंची-नीची और तिरछी दिशा में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उनको नित्य और अनित्य रूप से जानकर उनके आधार के लिये धर्म रूपी दीप का सम्यक रूप से प्रतिपादन किया ।" "वे सर्वदर्शी भगवान, अप्रतिहत केवलज्ञान वाले और निर्दोष चारित्र वाले थे, वे परम धीर प्रभु अपनी आत्मा में स्थिर, परिग्रह से रहित, निर्भय, आयु रहित और समस्त पदार्थों के उत्कृष्ट ज्ञाता थे ।" " वे महान बुद्धिमान प्रभु, अप्रतिबद्ध विहारी, संसार समुद्र से तिराने वाले, परम वीर, और अनन्त ज्ञानवान् थे । वे सूर्य एवं वैरोचन अग्नि की तरह अज्ञान रूप अन्धकार का नाश करके ज्ञान का प्रकाश करने वाले थे ।" भगवान महावीर की सर्वज्ञता के विषय में बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय भाग १ पृष्ठ ६२/६३ में लिखा है “निर्ग्रन्थ ज्ञात पुत्र सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है, वे अशेष ज्ञान और दर्शन के ज्ञाता हैं । चलते, ठहरते, सोते, जागते समस्त अवस्थाओं में सदैव उनका ज्ञान और दर्शन उपस्थित रहता है । " तीर्थंकरों के इसी ज्ञान के प्रकाश से प्राच्यभूमि इतिहासातीत काल से सदियों तक प्रज्वलित रही । पौरविक भारत की इस गौरवमय ऐतिहासिक परम्परा को जानना और उसे पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करना ही हमारा ध्येय है । अथर्ववेद में व्रात्यों का प्रियधाम प्राची दिशा को बताया गया हैप्रिय धाम भवति तस्य प्राच्य दिशि । - अथर्ववेद १५/२/१५
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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