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जैनत्व जागरण......
९. श्रमण संस्कृति की शलाका भूमि पूर्वी भारत
नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोधर-निरूद्ध-महाप्रभावः सूर्यातिशायि - महिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोक ॥
प्राची दिशा से सूर्य प्रतिदिन उदित होकर सारे जगत को आलोकित करता है; लेकिन उसका यह प्रकाश सीमित क्षेत्र में होता है, कभी राहु से ग्रसित होता है, कहीं बादलों में आच्छादित हो जाता है, परन्तु तीर्थंकरों के ज्ञानरूपी सूर्य के प्रकाश को कोई भी पदार्थ अवरुद्ध नहीं कर सकती है । उनका ज्ञानरूपी सूर्य तीनों लोकों के सभी पदार्थों को तीनों कालों में एक साथ प्रकाशित करता है ।
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एक बार डॉ. एनी बेसेन्ट से किसी जिज्ञासु ने पूछा कि क्या आप बताएंगी कि विश्व के पुराने और नये देशों में भारत का क्या वैशिष्ट्य है ? जवाब में उन्होंने कहा - " भगवान ने भारत को जो दिया है वह किसी भी देश को नहीं दिया, किन्तु जो दूसरे देशों को दिया है वह सब भारत को दिया है। परमेश्वर ने यूनान को सौन्दर्य, रोम को विधि, इजराईल को मजहब और भारत को एक ऐसा धर्म प्रदान किया है जिसमें समस्त सृष्टि का योगक्षेम और प्राणी मात्र को धारण करने की शक्ति है । वास्तव में यदि हम देखे तो भारत के पास ऐसा तत्त्वज्ञान का दर्शन है" जिसमें समस्त जड़ और चेतन निहित है और यह तत्त्वज्ञान हमें हमारे तीर्थंकरों के दिव्य ज्ञान से प्राप्त हुआ है । जिन्होंने तप, त्याग और साधना द्वारा केवलज्ञान प्रकट किया और सर्वज्ञ बनने के बाद जिन सनातन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उन्हीं के कारण आज भी भारत को वैचारिक क्षेत्र में दुनिया में सबसे महान माना जाता है ।
उत्तराध्ययन सूत्र में अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के केवल ज्ञान के विषय में उनके शिष्य सुधर्मा स्वामी से जम्बू स्वामी ने पूछा कि भगवान महावीर स्वामी का ज्ञान दर्शन कैसा था, उनका आचार कैसा था, आप इस