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जैनत्व जागरण.......
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अंचल का अंकन । सामान्य दृष्टि से ये प्रतिमाएँ अचेल है । २. किन्तु इन प्रतिमाओं के नीचे जो अभिलेख उपलब्ध है और उनमें जिन आचार्यों के नाम, कुल, शाखा एवं गण आदि उल्लेख है वे सभी प्रायः श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुरूप हैं । यह भी सत्य है कि कल्पसूत्र की स्थविरावली में वर्णित कुल, शाखा एवं गण को एवं उसमें वर्णित आचार को श्वेताम्बर अपनी पूर्व परम्परा ही मानते हैं । यह भी सत्य है कि दिगम्बर परम्परा उन कुल, शाखा, गुण और आचार्यों को अपने से संबद्ध नहीं मानती है ।
३. इसके अतिरिक्त जो विशेष महत्वपूर्ण तथ्य है वह यह है कि अनेक तीर्थंकर प्रतिमाओं की पादपीठ पर धर्मचक्र के अंकन के साथ-साथ चतुर्विध संघ का अंकन भी उपलब्ध है, उसमें साध्वी मूर्तियां तो सवस्त्र प्रदर्शित है किन्तु जहां तक मुनि मूर्तियों का प्रश्न है वे स्पष्ट रूप से नग्न हैं, किन्तु उनके हाथों में सम्पूर्ण कम्बल तथा मुख वस्त्रिका प्रदर्शित हैं । कुछ मुनिमूर्तियाँ ऐसी भी उपलब्ध होती है जिनके हाथों में पात्र प्रदर्शित है । एक मुनिमूर्ति इस रूप में भी उपलब्ध है कि वह नग्न है किन्तु उसके एक हाथ में प्रतिलेखन और दूसरे हाथ में श्वेताम्बर समाज में आज भी प्रचलित पात्र युक्त झोली है । इन मुनि मूर्तियों को सर्वथा अचेल परम्परा की भी नहीं माना जा सकता, वस्तुतः ये श्वेताम्बर परम्परा के विकास की पूर्व स्थिति की सूचक है तथा उसके द्वारा प्रतिस्थापित, वंदनीय एवं पूज्यनीय रही है, ये मूर्तियाँ निश्चित रूप से अचेल हैं । पुनः यदि श्वेताम्बर उनके प्रतिष्ठापक आचार्यों को अपना मानते है तो उन्हें यह भी मानना होगा कि प्राचीन काल में श्वेताम्बर परम्परा में भी अचेल मूर्तियों की ही उपासना की परम्परा थी । श्वेताम्बर मूर्तियों के निर्माण की परम्परा यद्यपि परवर्ती है, किन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि श्वेताम्बर धारा के पूर्व आचार्य एवं उपासक जिन मूर्तियों