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जैनत्व जागरण.......
"I had occasion to verify the records of Yuan Chwang (Hien Tsan-600-654A.A.) who said, 'There are many Tirthankaras heretiecs** here, who worship the Ksuna Deva. Those who invoke him with faith obtain their wishes....... The Tirthankaras by subduing their minds and mortifying the flesh get from the spirits of heaven sacred formule with which they control desires and recover the sick.'
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तिब्बत से प्राप्त प्राचीन चित्र दिगम्बर मुनियों के हैं परन्तु जिन्हें भ्रमवश बौद्धों का मान लिया गया है। जबकि बौद्धों में नग्न मूर्तियाँ नहीं होती । "The four monasteries.... their special marks... these paintings represent Buddhist saints often nude and in standing position.” (History of Western Tibet - A. H. Francka). पं. राहुल सांकृत्यायन ने अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान अनेक जैन मूर्तियों को एक बंद कमरे में पड़ा हुआ देखा था । उन मूर्तियों के लेखों का विवरण भी उन्होंने अपनी किताब 'मेरी तिब्बत यात्रा' में दिया है ।
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इस प्रकार हम कह सकते है कि जैन धर्म के तीर्थंकरों का अस्तित्त्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि चारों दिशाओं में मिलता है । लेकिन दुर्भाग्यवश श्रमण संस्कृति का वास्तविक स्वरूप जैन धर्म के रूप में आज सिर्फ भारतवर्ष में ही सीमित रह गया है । पुष्यमित्र और शंकराचार्य जैसे प्रबल शैव उपासकों द्वारा प्रताड़ित करने के बावजूद जैनधर्म का अस्तित्त्व आज भी यहाँ पर बरकरार है । जैन धर्म की प्रागैतिहासिकता, अति प्राचीनता और अनादिता के प्रवहमान धारा से प्राप्त साक्ष्यों से चौबीस तीर्थंकरों के अस्तित्व में सहज ही आस्था और विश्वास स्थिर होता है । हमें अपनी इस विश्व विख्यात एवं मान्य तीर्थंकर परम्परा पर गर्व होना चाहिए। क्योंकि विश्व के समस्त धर्म और मानवीय आत्मविकास एवं स्सभ्यता-स्सामाजिक स्संस्कृति का मूल आधार यही तीर्थंकर परम्परा हैं ।