________________
अकबर प्रतिबोधक कोन ?
परिशिष्ट- 1
जैनाचार्यों के उपदेश से हुए शासन प्रभावक कार्यों का संकलन
अकबर बादशाह ने आ. हीरविजयसूरिजी एवं आ . जिनचंद्रसूरिजी और उनके शिष्यों के उपदेश से जो सत्कार्य किये थे, वे पूर्व में दिये गये फ़रमान आदि में बिखरे हुए पाये जाते हैं। अतः पाठकों को अच्छी रीति से बोध होवे, इस हेतु वे सत्कार्य खरतरगच्छ एवं तपागच्छ के आचार्य आदि को लेकर दो विभाग में यहाँ दिये जाते हैं ।
खरतरगच्छीय आचार्य आदि द्वारा हुए शासन प्रभावक कार्य
अ. 1. आ. जिनचंद्रसूरिजी के प्रभाव से सम्राट ने सौराष्ट्र में द्वारका के जैनजैनेतर मंदिरों की रक्षा का फ़रमान वहाँ के सूबों के नाम भेजा।
2. एक बार सम्राट ने काश्मीर जाने की तैयारी की, जाने से पहले सूरिजी को बुलाकर उनसे धर्मलाभ लिया। उसके उपलक्ष्य में सम्राट ने आषाढ़ सुद 9 से 15 तक सात दिनों के लिए जीवहिंसा बंद करने का फ़रमान अपने सारे राज्य के 12 सूबों में भेजा । उस फ़रमान में लिखा था कि आ. श्री . हीरविजयसूरिजी के कहने से पर्युषणों के 12 दिनों में जीवहिंसा का निषेध पहले कर चुके हैं अब श्री जिनचंद्रसूरिजी की प्रार्थना को स्वीकार करके एक सप्ताह के लिए वैसा ही हुक्म दिया जाता है।
3. खंभात के समुद्र में एक वर्ष तक हिंसा न हो।
4. लाहौर में आज एक दिन के लिए हिंसा न हो। ऐसा फ़रमान भी जारी किये। इस प्रकार जिनचंद्रसूरिजी लाहोर में अकबर के सांनिध्य में एक वर्ष व्यतीत (वि. सं. 1649 का चौमासा) करके वि. सं. 1650 में गुजरात की तरफ विहार कर गये ।
(मध्य एशिया एवं पंजाब में जैन धर्म - पृष्ठ 291 से साभार उद्धृत) *
*
यह ग्रंथ तपागच्छ के श्रावक पं. हीरालालजी दुग्गड़ ने लिखा है, जिसमें खरतरगच्छ के आचार्यों के उपदेश द्वारा हुए कार्यों का भी उल्लेख किया है। परंतु खेद की बात यह है कि इसी ग्रंथ को लेकर खरतरगच्छीय साधु-भगवंत ने नया ग्रंथ (सच्चाई छुपाने से सावधान') संपादित किया है, जिसमें तपागच्छ का नाम या उनके आचार्यों के उपदेश से हुए सत्कार्यों का वर्णन, जो पूर्व के ग्रंथ में था, उसे पूर्ण रूप से छोड़ दिया गया है।
48