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अकबर प्रतिबोधक कोन ?
गुणानुरागी मध्यस्थ जनों को नम्र निवेदन
गुरुभक्ति होनी बुरी बात नहीं, परंतु भक्ति के अतिरेक में आकर ठोस प्रमाण बिना ही जैसे-तैसे करके, अन्य आचार्य के द्वारा किये गये सुकृतों का अपने गुरु के नाम से प्रचार करना उचित प्रतीत नहीं होता है । आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी प्रभावक थे और अकबर बादशाह के द्वारा सम्मानित हुए थे। उन्होंने भी 7 दिन की अमारि प्रवर्तन कराना आदि सत्कार्य कराये थे और अकबर द्वारा उन्हें 'युगप्रधान पदवी' दी गयी थी, इत्यादि कहना और प्रचार करना अनुचित नहीं है। परंतु अकबर को जैन अनुयायी कहलाने का श्रेय सूरिजी को ही है", सम्राट के हृदय में इतने गहरे दयाभाव के होने का प्रबल कारण आ. जिनचंद्रसूरिजी और उनके शिष्य आ. श्री जिनसिंहसूरिजी के धर्मोपदेश ही हैं (2), छः महीने की अमारि का प्रवर्तन करानेवाले आ. जिनचंद्रसूरिजी थे ", अकबर द्वारा आ. जिनचंद्रसूरिजी को ही सर्वश्रेष्ठ साधु कहना वगैरह बातें जो पहले बतायी रीति से इतिहास विरूद्ध है, उनको सही मानकर वर्तमान के खरतरगच्छीय साधु-साध्वीजी भगवंतों द्वारा 'जिनचंद्रसूरिजी ही 'अकबर प्रतिबोधक' हैं, ' इत्यादि बातों का प्रचार करना एवं जो सत्य हकीकत है कि पूर्वोक्त कार्य आ. श्री हीरविजयसूरिजी एवं उनके शिष्यों की प्रेरणा से हुए थे तथा आ. श्री हीरविजयसूरिजी ही अकबर प्रतिबोधक' कहलाने योग्य हैं, इसका अपलाप करना एवं सत्य हकीकत को झुठलाना सत्यान्वेषी एवं मध्यस्थ गुणानुरागी सज्जनों के लिए उचित नहीं है।
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जिन महापुरुषों ने जिस कार्य क्षेत्र में जो सत्कार्य किये थे, उन सत्कार्यों का श्रेय उन्हीं महापुरुषों को देकर कृतज्ञता प्रगट करने में वास्तविक गुणानुराग कहलाता है।
(1). देखें- 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पृ. 118, जिसका खुलासा इस लेख के पृ. 46-47 पर किया है। (2). देखें- 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पृ. 117, जिसका खुलासा इस लेख के पृ. 46 पर किया है। (3). देखें - 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि ' पृ. 113, जिसका खुलासा इस लेख के पृ. 37 पर किया है। (4). देखें- 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पृ. 83, जिसका खुलासा इस लेख के पृ. 33 पर किया है।
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