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________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? अर्थात् :- मेरे जन्ममास में, सारे राज्य में मांसाहार निषिद्ध रहेगा । * वर्ष में एक-एक दिन इस प्रकार के रहेंगे, जिसमें सर्व प्रकार की पशु - हत्या का निषेध हो। मेरे राज्याभिषेक का दिन अर्थात् वृहस्पतिवार और रविवार के दिन भी कोई मांसाहार नहीं कर सकेगा। क्योंकि संसार का सृष्टि सर्जन सम्पूर्ण हुआ था उस दिन किसी भी जन्तु का प्राणघात करना अन्याय है। मेरे पिता ने ग्यारह वर्षों से अधिक समय तक इन नियमों का पालन किया है और उस समय रविवार के दिन उन्होंने कदापि मांसाहार नहीं किया। अतः मेरे राज्य में मैं भी उन दिनों में जीवहिंसा निषेधात्मक उद्घोषणा करता हूँ। ( युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पृष्ठ - 114 ) इतिहासकार डॉ. विन्सेन्ट स्मिथ का मत एवं पिन्हेरो पादरी का पत्र बादशाह को मांसाहार छुड़ाने में तथा जीववध न करने में श्री हीरविजयसूरि तथा उनके शिष्य-प्रशिष्य आदि जैन उपदेशक ही सिद्धहस्त हुए हैं। डॉ. स्मिथ यह भी कहते हैं कि But Jain the holymen undoubtedly gave Akbar prolonged instruction for years, which - largely influenced his actions; and they secured his assent to their doctrines so far that he was reputed to have been converted to Jainism."" - " अर्थात्-परंतु जैन साधुओं ने निःसंदेह वर्षों तक अकबर को उपदेश दिया था। इस उपदेश का बहुत प्रभाव बादशाह की कार्यावली पर पड़ा था। उन्होंने अपने सिद्धान्तों को उससे यहाँ तक मना लिया था कि लोगों में ऐसा प्रवाद फैल 'गया था कि - 'बादशाह जैनी हो गया है।' यह बाद प्रवादमात्र ही नहीं रही थी, किन्तु कई विदेशी मुसाफिरों को अकबर के व्यवहार से निश्चय हो गया था कि 'अकबर जैन सिद्धान्तों का अनुयायी है।' 1. इस के संबंध में डॉ. स्मिथ ने अपनी अकबर नाम की पुस्तक में एक मार्के की बात लिखी है। उसने इस पुस्तक के पृष्ठ 262 में 'पिनहरो' (Pinhiero) नामक एक पुर्तगेज पादरी के पत्र के उस अंश को उद्धृत किया है कि जो ऊपर की बात को प्रगट करता है। यह पत्र उसने लाहौर से 3 सेप्टेम्बर 1565 (वि. सं. 1652) को लिखा था, उस में उसने लिखा था - जहाँगीर ने अपने जन्म मास में मांसाहार का निषेध उपाध्याय भानुचंद्रजी एवं सिद्धिचंद्रजी की प्रेरणा से किया था, ऐसा पृष्ठ 35 पर दिये गये जहाँगीर के फरमान से पता चलता है। Jain Teachers of Akbar by Vincent A, Smith. 43
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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