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________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? “He Follows the sect of the Jains (Vertie )" ऐसा लिखकर उस ने कई जैन सिद्धान्त भी अपने इस पत्र में लिखे थे जब विजयसेन सूरि लाहौर में अकबर के पास थे। इस से यह स्पष्ट समझ सकते हैं कि सम्राट की रहमदिली (दयालुवृत्ति) बहुत ही दृढ़ होनी चाहिये। और एसी दयालुवृत्ति जैनाचार्यों ने, जैन उपदेशकों ने ही उत्पन्न कराई थी। इस बात के लिये अब विशेष प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। - मध्य एशिया एवं पंजाब में जैन धर्म - पृष्ठ 296-297 आश्चर्य की बात है कि इन्हीं प्रमाणों को देखकर, 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' 9वें प्रकरण में अगरचंदजी नाहटा ने ... 1. पृष्ठ 116 पर बताया कि - 'सम्राट जहांगीर कथित शेष ग्यारह वर्ष से अधिक समय तक और डॉ विन्सेन्ट स्मिथ का 'अपने जीवन' के अंतिम भाग के कथन से स्पष्ट है कि सम्राट के हृदय में इतने गहरे दया भाव के होने का प्रबल कारण आ . जिनचंद्रसूरिजी और उनके शिष्य आ. जिनसिंहसूरिजी के धर्मोपदेश ही हैं, क्योंकि सं. 1662 में अकबर का देहान्त हुआ और सं. 1649 से अकबर को सूरज के सत्समागम का लाभ मिला। सूरिजी सं. 1651 में अकबर के पास ही थे। इससे उपर के उभय कथनों की पुष्टि होती है।' 2. पृष्ठ 118 पर (Pinheiro ) पिनहेरो के पत्र के उपर से यह तात्पर्य निकाला कि - 'इस पत्र के लेखन का समय सं. 1652 (सन् 1595) है, करीब उसी समय श्री जिनचंद्रसूरिजी महाराज, श्री जिनसिंहसूरिजी आदि लाहौर में अकबर के पास थे। अतः अकबर को जैन धर्मानुयायी कहलाने का श्रेय सूरिजी को ही है। क्योंकि यह प्रभाव सूरिजी के सतत धर्मोपदेश का ही है।' अगरचंदजी नाहटा की ये दोनों बातें स्वीकार्य नहीं बनती है, क्योंकि - 1. पहली बात तो यह है कि आ . जिनचंद्रसूरिजी के साथ जो लाहोर पधारे थे, ऐसे जयसोम उपाध्यायजी ने वि. सं. 1650 की विजयादशमी को कर्मचंद्र प्रबंध ( कर्मचंद मंत्री बंध प्रबंध) की रचना की और उसमें लिखा है कि आ. जिनचंद्रसूरिजी ने अकबर के पास लाहौर में वि. सं. 1649 में चातुर्मास किया था और कुल एक वर्ष व्यतीत कर वि. सं. 1650 में गुजरात की तरफ विहार कर गये।' इस ग्रंथ की टीका वि. सं. 1655 में गुणविनयमुनिजी ने की थी, वे भी लाहौर में साथ में पधारे थे। 44
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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