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________________ अकबर प्रतिबोधक कोन सत्य तो सत्य ही रहता है पीछे दिये गये ऐतिहासिक उल्लेखों के आधार से इतना निश्चित हो जाता है कि, जैसे संप्रति राजा के प्रतिबोधक आर्यसुहस्तिजी, वनराज चावडा प्रतिबोधक आ. शीलगुणसूरिजी, कुमारपाल राजा को प्रतिबोध देने वाले हेमचंद्राचार्यजी, महम्मद तुघलक के प्रतिबोधक आ. जिनप्रभसूरिजी कहलाते हैं, वैसे ही क्रूर और हिंसक अकबर बादशाह को सर्वप्रथम प्रतिबोध देकर उसको करुणावंत बनाकर और क्रमशः छः महीने तक का अमारि प्रवर्तन करवाने के कारण, 'अकबर प्रतिबोधक' तो आ. श्री हीरविजयसूरिजी ही कहलाने योग्य हैं। अन्य आचार्यों ने अकबर के प्रतिबोधित होने के बाद उसके बोध को और विकसित किया था, ऐसा . स्वीकार करना चाहिए। ___ वि. सं. 1639 में आ. हीरसूरिजी से प्रतिबोध पाने के बाद अकबर बादशाह में बहत परिवर्तन आया। वह सतत जैन संतों के समागम की इच्छा रखता था और जीवन के अन्त तक उसे जैन साधुओं का सांनिध्य पाने का सौभाग्य मिला। जिसमें तपागच्छ के उपाध्याय शांतिचंद्रजी, उपा. भानुचंद्रजी, सिद्धिचंद्रजी एवं उनके बाद (गुजराती वि. सं. 1648, हिन्दी वि. सं. 1649) में खरतरगच्छ के आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी और आ. श्री जिनसिंहसूरिजी के संपर्क में रहा था और अन्तिम विशिष्ट उपदेश अकबर बादशाह को आ. विजयसेनसूरिजी (गु. सं. 1649-5051) से मिला था, जिससे अकबर का जीवन अहिंसा की भावना से ओत-प्रोत हो गया था। उसका वर्णन इतिहास में इस तरह प्राप्त होता है:___ 1. जहाँगीर के उद्गार : सम्राट जहाँगीर, अपनी 'आत्म जीवनी' में अपने राज्यारोहण के पश्चात् प्रकाशित 12 आज्ञाओं में से 11 वीं आज्ञा इस प्रकार लिखते हैं - | ‘আমার জন্ম মাসে সমগ্র রাজ্যে মাংসাহার নিষিদ্ধ এবং বৎসরের মধ্যে এমন এক এক দিন নির্দিষ্ট থাকিবে যে দিন সর্ব প্রকার পশু হত্যা নিষিদ্ধ। আমার রাজারােহণের দিন বৃহস্পতিবার, সে দিন এবং রবিবার কে হ মাংসাহার করিতে পারিবে না। কেননা যে দিন জগৎ সৃষ্টি সম্পূর্ণ হইয়া ছিল সে দিন কোন জীবের প্রাণ হরণ করা অন্যায়। ১১ বৎসের অধিক কাল আমার পিতা এই নিয়ম পালন করিয়াছেন এবং এই সময়ের মধ্যে রবিবার দিন তিনি কখনও মাংসাহার করেন নাই। সুতরাং আমার রাজ্যে আমিও এই দিনে মাংসাহার নিষিদ্ধ বলিয়া ঘােষণা করিতেছি।” [ बसौतन आय बोवनौ by कूभूमिनो भिख ...]
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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