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________________ =अकबर प्रतिबोधक कोन?== अर्थात् – 'मनुष्यों को मांस खाने की ऐसी आदत पड़ जाती है कि- यदि उन्हें दुःख न होता तो वे स्वयं अपने आप को भी अवश्य खा जाते।' “मैं अपनी छोटी उम्र से ही जब-जब मांस पकाने की आज्ञा करता था तबतब वह मुझे नीरस लगता था। तथा उसे खाने की मैं कम अपेक्षा रखता था। इसी वृत्ति के कारण पशु रक्षा की आवश्यकता की तरफ़ मेरी दृष्टि गई और बाद में मैं मांस भोजन से सर्वथा दूर रहा।' ____'मेरे राज्यारोहण की तिथि के दिन प्रतिवर्ष ईश्वर का आभार मानने के लिये कोई भी मनुष्य मांस न खाये। जिस से सारा वर्ष आनन्द में व्यतीत हो।' ___कसाई, मच्छीमार तथा ऐसे ही दूसरे, कि जिन का व्यवसाय केवल हिंसा करने का ही है, उनके लिये रहने के स्थान अलग होने चाहियें और दूसरों के सहवास में वे न आवे, उसके लिये दंड की योजना करनी चाहिये।' । उपर्युक्त तमाम वृतांत से हम इस निश्चय पर आते हैं कि - अकबर की जीवनमूर्ति को सुशोभित- देदीप्यमान बनाने में सुयोग्य- जैसी चाहिये वैसी दक्षता जो किसी ने बतलाई हो तो वे हीरविजय सूरि आदि जैनसाधुओं ने ही बतलाई थी। मात्र इतना ही नहीं परंतु उपाध्याय भानुचंद्र और खुशफहम सिद्धिचंद्र ने अकबर पर उपकार तो किया ही था किन्तु उसके पुत्र जहाँगीर तथा पौत्र शाहजहाँ के जीवन पर भी खूब प्रभाव डाला था और उन्हें जीवदया, धर्मसहिष्णुता, एवं प्रजावात्सल्यता का महान अनुरागी भी बनाया था। = 41
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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