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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद wrong for they do not reason at all. ..
किन्तु आँख के दर्शनमात्र से पुरुष के हृदय की परीक्षा करने की जो शक्ति स्त्री में है वह पुरुष में नहीं है। यह भी सच है कि पुरुष में बुद्धि का और स्त्री में भावना का प्राधान्य है । पुराना स्थान छोडकर नया स्थान स्वीकृत करना पुरुष के लिए सहज नहीं है, पुराने की ममता छोडना पुरुषों के लिए सरल नहीं है, किन्तु स्त्री ? वह एक स्थान तथा कुटुम्बकी माया ममता-छोड़ कर किसी अन्य स्थान तथा अनजान परकीय व्यक्तियों को सहज ही में स्वकीय बना लेती है। :
When crowned with blessings. She doth rise To Take her latest leave of home, As parting with a lon; embrace, She enters other realn s of love.''१८
इस क्रिया को भी वह सहज तथा सरस रूप से करती है। वही स्त्री माता होने के बाद कितनी बदल जती है और विधवा होने के बाद सभी वस्त्र तथा आभूषणों को, मौज और शौक को सर्प की केंचुली की भांति उतार कर फेंक देने में एक क्षण की भी देर नहीं करती । भावनाओं के इतने परिवर्तनों का एक ही जीवन में अनुभव क ना सामान्य बात नहीं है। संसार में यदि सचमुच कहीं जादू है तो वह स्त्री के हृदय में ही है। गांधीजी कहते थे कि मेरे अन्दर स्त्री-हृदय है। इसीलिए उन्होंने स्त्री-विकास में काफी योग दिया। अनेक स्त्रियां अपना सुख-दुःख निःसंकोच उनके सामने कह सकती थीं ।
स्याद्वाद अथवा अनेकान्तवाद किसी भी विषय के दो अन्तों को छोडकर शान्ति का मध्यम मार्ग ग्रहण करने का आदेश देता है।
स्याद्वाद का अर्थ यही है कि सदगुण के अनेक रूप हैं । साधु की तपस्या, सती का सतीत्व, बालक की निर्दोषता, सुभट का शौर्य आदि सभी के लिए संसार में स्थान है । स्याद्वादी इन सभी का सम्मान कर सकता है। वह यदि निसर्गप्रेमी हो तो वर्षाकाल की वर्षा, शरद ऋतु की शीतलता और ग्रीष्मकाल का आतप इन सभी अवस्थाओं का आनन्द ले सकता है। क्योंकि वह समझता है कि प्राकृतिक रचना में इन सबको स्थान है, सभी का उपयोग