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अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक
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है। उसने " ओपिनियन" की व्याख्या "संभावना विषयक विश्वास" (Trust in probabilities) भी की है अर्थात् जिस व्यक्ति में अपने अंश - ज्ञान या अल्प ज्ञान का भान जगा हुआ होता है वह नम्रता से पद-पद पर कहता है कि ऐसा होना भी संभव है मुझे ऐसा प्रतीत होता है। इसीलिए स्याद्वादी पद-पद पर अपने कथन को मर्यादित करता है । स्याद्वादी जिद्दी की तरह यह नहीं कहता कि मैं ही सच्चा हूँ और बाकी झूठे हैं । लुई फिशर ने गांधीजी का एक वाक्य लिखा है- " मैं स्वभाव से ही समझौता - पसन्द व्यक्ति हूँ क्योंकि मैं ही सच्चा हूँ ऐसा मुझे कभी विश्वास नहीं होता । १३
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इसलिए सभी धर्म और सभी दर्शन जैसा कि गाँधीजीने कहा है, सच तो हैं, किन्तु अधूरे हैं अर्थात् प्रत्येक में सत्य का न्यूनाधिक अंश है। किसी एक में सम्पूर्ण सत्य नहीं है। टेनिसन ने कहा है कि सभी धर्म और दर्शन ईश्वर के ही स्फुलिंग हैं किन्तु सत्यनारायण स्वयं उन सभी में बद्ध न होकर, उनसे दशांगुल उँचा ही रहता है । १४
"They are but broken dish of thee
And thou o Lord! art More than they""""
गाँधीजी ने १९३३ ई. में डो. पट्टाभि से कहा था कि जब मैं किसी मनुष्य को सलाह देता हूँ तब अपनी दृष्टि से नहीं किन्तु उसीकी दृष्टि से देता हूँ । इसके लिए मैं अपने को उसके स्थान में रखने का प्रयत्न करता हूँ । जहाँ मैं यह क्रिया नहीं कर सकता वहाँ सलाह देने से इन्कार कर देता हूँ ॥१६
I advise a man not from my standpoint but from his. I try to put myself in his shoes. When I cannot do so, I refuse to advise.१७
इस प्रकार की देखने - सोचने की आदत प्रत्येक विषय में हो तो हमें बहुत सी वस्तुएँ अनोखे स्वरूप में ही दिखाई देगी। इसका एक उदाहरण देती हूँ - "स्त्री की बुद्धि हमेशा तुच्छ होती है।" इत्यादि स्त्रियों की हीनता दिखानेवाले अनेक वचन पुरुषों ने लिखे हैं। स्त्रियों की तार्किक शक्ति पुरुषों के समान नहीं है, यह सच हैं। विलियम हेजलिट ने कहा है - स्त्रीयाँ मिथ्या तर्क नहीं करतीं क्योंकि वे तर्क करना जानती ही नहीं Women do not reason