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________________ समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद सर्वस्य तद्सर्वस्यास्य बाह्यतः ।" ईश - ५ सोक्रेटीस को अपने ज्ञान की अपूर्णता का, - उसकी अल्पता का पूरा भान था । इस मर्यादा के भान को ही उसने ज्ञान अथवा बुद्धिमत्ता कहा है । वह कहता था कि मैं ज्ञानी हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं अज्ञ हूँ। दूसरे ज्ञानी नहीं हैं क्योंकि वे यह नहीं जानते कि वे अज्ञ हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती से पूछा गया “आप विद्वान हैं या अविद्वान?" स्वामी जी ने कहा “दार्शनिक क्षेत्र में विद्वान और व्यापारिक क्षेत्रमें अविद्वान।" यह अनेकान्तवाद नहीं तो क्या है ? प्लेटो ने इस स्याद्वाद अथवा सापेक्षवादका निरूपण विस्तार से किया। उसने कहा कि हम लोग महासागर के किनारे खेलनेवाले उन बच्चों के समान हैं जो अपनी सीपियों से सागर के पूरे पानी को नापना चाहते हैं। हम उन सीपियों से महोदधि का पानी खाली नहीं कर सकते फिर भी अपनी छोटी-छोटी सीपियों में जो पानी इकट्ठा करना चाहते हैं, वह उस अर्णव के पानी का ही एक अंश है, इसमें कोई संशय नहीं । उसने और भी कहा है कि भौतिक पदार्थ सम्पूर्ण सत् और असत् के बीच के अर्धसत् जगत् में रहते जैन की तरह उसने भी जगत को सदसत् कहते हुए समझाया कि वृक्ष, पक्षी, अथवा मनुष्य आदि "है" और "नही' है" अर्थात् एक दृष्टि से "है" और अन्य दृष्टिसे "नहीं है" "अथवा" एक समय में "है" और दूसरे समय में नहीं है अथवा न्यून या अधिक है, अथवा परिवर्तन या विकास की क्रिया से गुजर रहे हैं । सत् और असत् दोनों के मिश्रण रूपसे हैं अथवा सत् और असत् के बीच में हैं । उसकी व्याख्या के अनुसार नित्य वस्तु का आकलन अथवा पूर्ण-आकलन "सायन्स" (विद्या) है और असत् अथवा अविद्यमान वस्तु का आकलन अथवा संपूर्ण अज्ञान “नेस्यन्स" (अविद्या) है, किन्तु इन्द्रियगोचर जगत् सत् और असत् के बीच का है। इसीलिए उसका आकलन भी "सायन्स" तथा "नेस्यन्स" के बीच का है ।२ इसके लिए उसने "ओपिनियन" शब्द का प्रयोग किया है। उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि "नोलेज" का अर्थ पूर्ण ज्ञान है, और "ओपिनियन" का अर्थ अंश ज्ञान
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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