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________________ समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद 1 वस्तु के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षात्मक जब 'स्व' शब्द का उपयोग किया जाता है तब उससे अस्ति' अर्थात 'है' ऐसा निर्देश होता है इसी प्रकार जब इन चार अपेक्षाओं में जब 'पर' शब्द का उपयोग होता है तब 'नास्ति' अर्थात् 'नही है' ऐसा निर्देश होता हैं । अर्थात् इन चारों में जब स्व-स्वरूप की अपेक्षा आती है तब 'है' ऐसा कहते हैं और जब पर- स्वरूप की अपेक्षा आती है तब 'नहीं है' ऐसा कहते हैं । ३२ इन सभी चारों अपेक्षाओं के लिये 'चतुष्टय' शब्द का उपयोग किया जाता है, चारों का उपयोग जब एक साथ करना हो तब इस शब्द का उपयोग होता है । 'स्व' और 'पर' शब्द को 'चतुष्टय' शब्द में जोडकर 'स्व चतुष्टय' और 'पर चतुष्टय' ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है । पांच कारण इस जगत में जो कुछ भी कार्य होता है उसके पीछे कोई न कोई कारण तो होना चाहिये, होता ही है, कुछ कारण दृष्टिगोचर होते हैं, कुछ अदृश्य होते हैं, कुछ ज्ञात होते हैं, तो कुछ अज्ञात होते हैं सूर्य निकलता है और अस्त होता है। रात जाती है और दिन आता है । मनुष्य का जन्म होता है और मृत्यु होती है । इसके अलावा भी सुख, दुःख, गरीबी, अमीरी, तन्दुरस्ती तथा बीमारी इत्यादि बातों को लेकर बहुत सी घटनाएं हमारी नजरों के सामने हमेशा होती रहती है । ऐसे अनेक कार्य अनादिकाल से होते रहे हैं और अनंतकाल तक होते रहेंगे। इनमें से कितने ही कार्यों के कारण हमारी समझ में आते हैं, कितनेव समझ में नहीं भी आते हैं । ज्ञानकी सीमितता के कारण बहुत सी घटनाओं के कारण हमारी समझ में नहीं आते हैं। सभी इस राय पर एक मत है कि सभी कार्यों के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है । विभिन्न तत्त्वविशारदों ने इसके भिन्न कारण बताये हैं । जैन तत्त्वविशारदों ने इसके पांच कारण बताये हैं । इन पांचों कारणों को अलग २ स्वीकार ने वाले मत भी है । किन्तु जैन दार्शनिकों का कहना है जहाँ तक ये पांचों कारण 1
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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