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(२)
चार आधार, पाँच कारण एक साथ नहीं मिले वहां तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । ये पांच कारण निम्नलिखित है : (१) काल (समय : Time)
स्वभाव (वस्तुका गुणधर्म : Quality or function) (३) भवितव्यता अर्थात् नियति (अगम्य शक्ति Abstruse Po
tentiality) (४) कर्म अर्थात् प्रारब्ध (नसीब : Luck) (५) पुरुषार्थ (प्रयत्न : effort)
इस विषय में विभिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ लोग यह मानते हैं कि प्रत्येक कार्य का कारण काल ही है। अपने अपको स्वभाववादी कहने वाले प्रत्येक कार्य के लिये स्वभाव को ही कारण मानते हैं । जब कि नियति में मानने वालों के अनुसार प्रत्येक कार्य का कारण सिर्फ नियति ही है। चौथा वर्ग कर्मवादियों का है। ये लोग कर्म के अलावा दूसरा कोई कारण मानने को तैयार नहीं, जब कि पुरुषार्थ में मानने वाले उद्यमवादी प्रत्येक कार्य के पीछे उद्यम के अलावा दूसरा कोई कारण मानने को तैयार नहीं है। जैन दार्शनीकों के अनुसार ये पांचों कारण प्रत्येक कार्य को गति प्रदान करते हैं (Guiding force) का कार्य करते हैं, ये पांचों कारण जब तक एक साथ इकटे नहीं हो जाते तब तक सामान्यतया कोई कार्य नहीं हो सकता।
(१) काल केवल काल को ही कारण मानने वालों के अनुसार प्रत्येक वस्तु नियमित समय पर पैदा होती है और नियमित समय पर नष्ट हो जाती है। गर्भ के अन्दर से बालक, दूध के अन्दर से दही, बीज के अन्दर से वृक्ष, वृक्ष के अन्दर से फल एक निश्चित समय पर ही होते हैं । चक्रवर्तियों, तीर्थंकरों, अवतारों, बचपन, यौवन, वृद्धावस्था, जन्म-मृत्यु इत्यादि सभी काल के विपाक है। काल को छोडकर कोई भी कार्य सम्भव नहीं है। काल को भी ये लोग काल ही का कार्य मानते हैं ।