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________________ रेपवृत्तिं परित्यज्य, ना नवनीत मार्दवम् । णलाभाय भजेद् भव्यो, भक्त्या साकं भृशं सदा ।।३।। अर्थ- क्रूरवृत्ति को छोड़कर भव्य मनुष्य ज्ञानलाभ के लिये भक्ति के साथ । सदा मक्खन जैसी मृदुता को अत्यधिक प्राप्त करें।।३।। विद्याब्धिना सुशिष्येण, ज्ञानोदधेरलड्कृतम् । रसेनाध्यात्मपूर्णेन, शतकं शिवदं शिवदं शुभम् ।।४।। अर्थ- ज्ञानसागर जी के शिष्य विद्यासागर ने अध्यात्मपूर्ण रस से अलङ्कुत इस कल्याणदायक शुभ'श्रमणशतक की रचना की है।।४।। चित्ताकर्षि तथापि जैः, पठनीयं विशोध्य तैः । . तं मन्ये पण्डितं योऽत्र, गुणान्वेषी भवेद् भवे ।। ५ ।। - अर्थ- यद्यपि शतक चित्ताकर्षक है तथापि ज्ञानी जनों को शुद्धकर पढ़ना चाहिये। इस जगत् में मैं उसे पण्डित मानता हूँ, जो गुणान्वेषी हो- गुणों की खोज करने वाला हो।।५।। क-गुप्ति-खोपयोगेऽदः, संवत्सरे च विक्रमे । वैशाखपूर्णिमामीत्वेतीमामितिमिति गतम् ।।६।। अर्थ--यह शतक विक्रम संवत् २०३१ में वैशाखपूर्णिमा को प्राप्त हुआ।। यह शतक क = आत्मा । गप्ति = 3. ख - आकाश 0. उपयोग - ज्ञान-दर्शनापयोग 2. इस तरह विक्रम संवत 2031 म वैशाख पूर्णिमा मिति का पूर्ण हुआ। (५१)
SR No.002457
Book TitlePanchshati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar, Pannalal Sahityacharya
PublisherGyanganga
Publication Year1991
Total Pages370
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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