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मोक्षमार्गी मनुष्य विविध-विपत्तियों में भी धैर्य को नहीं छोड़ता है वह शान्त, जितेन्द्रिय तथा मृदुपरिणामी साधु होकर धर्म को प्राप्त होता है ।।६।।
तले क्षितेर्जनाः सर्वे सुखिनः सन्तु सौगत । कं भजन्तु सदैवैते यान्तु कदापि नो ह्यकम् ।।७।।
हे भगवन् ! पृथ्वीतल पर सब मनुष्य सुखी हों, ये सदा ही सुख को प्राप्त हों, कभी भी दुःख को प्राप्त न हों यह मेरी भावना है ||७||
क्षायोपशमिकज्ञानात् स्खलनमत्र भावतः । विज्ञैरतः समाशोध्य पठितव्यो सुखप्रदम् ।।८।।
. क्षायोपशमिक ज्ञान होने से इस ग्रन्थ में अशुद्धियां हुई हैं अतः ज्ञानीजनों को भाव की अपेक्षा संशोधन कर इस सुखदायक ग्रन्थ को पढ़ना चाहिये ||८||
ख्याते क्षेत्रे 'महावीरे सर्वैर्जनैः समादृते । गंभीरनदकूलस्थे संसार - कूल - दर्शिनि ।।९।। समुपयोग - योगाभमोक्षे विक्रमवत्सरे । वैशाखीममामित्वेतीमामितिमितिं गतम् ।।१०।।
सब लोगों के द्वारा आदृत जो कि गभीरा नदी के तट पर स्थित है और संसार का किनारा दिखलाने वाले महावीरजी अतिशय क्षेत्र में वैशाख वदी अमावास्या विक्रम सम्वत् 2022 को संस्कृत भावना शतकाकी रचना पूर्णता को प्राप्त हुई ।।९-१०।।
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