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जो आपमें निरत है सुख लाभ लेने,
___ आते न पास उसके विधि कष्ट देने । क्या सिंह के निकट भी गज झुण्ड जाता ?
जाके उसे भय दिखाकर क्या सताता ?।।८।।
हे! शुद्ध ! बुद्ध! मुनिपालक! बोधधारी !
है कौन सक्षम कहे महिमा तुम्हारी ? ऐसा स्वयं कह रही तुम भारती है,
शास्त्रज्ञ पूज्य गणनायक भी व्रती हैं ।।९।।
है आपने स्वतन की ममता मिटादी,
सच्चेतना सहज से निज में बिठादी.। लो! देह में इसलिये कनकाभ जागी,
मोहान्धकार विघटा, निज ज्योति जागी ।।१०।।
श्रीपाद ये कमल-कोमल लोक में हैं,
ये ही यहाँ शरण पंचम काल में हैं। है भव्य कंज खिलता, इन दर्श पाता,
पूनँ अतः हृदय में इन को बिठाता ।।११।।।
लोहा बने कनक पारस संग पाके,
___ मैं शुद्ध किन्तु तमसा तुम संग पाके । वो तो रहा जड़,रहे तुम चेतना हो,
कैसा तुम्हें जड़ तुला पर तोलना हो?।।१२।।
सानन्द भव्य तुम में लवलीन होता,
पाता स्वधाम सुख का, गुणधाम होता । औ देह त्याग कर आत्मिक वीर्य पाता,
__ संसार में फिर कभी नहिं लौट आता ।।१३।।
काले घने भ्रमर से शिर में तुम्हारे,
ये केश हैं नहि विभो ! जिन देव प्यारे । ध्यानाग्नि से स्वयम को तुमने जलाया,
लो ! सान्ध्र धूम्र मिस बाहर राग आया ।।१४।।
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