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________________ २२ उल्लासिक स्तोत्रम् ।। जिन्होंके ( थण ) स्तकने (भर ) भारसे ( नमिरीहिं ) झुकी हुई ( मुठि ) मुट्ठीसे (गिज्जो ) ग्रहण करने लायक ( उदरीहिं ) उदर हैं जिन्होंके ( ललिभ) सुंदर हैं ( भुअलयाहिं ) भुजलता जिन्हों की (पीण) पुष्ट हैं ( सोणिस्थणीहिं ) कटिपश्चाद्भाग जिन्होंके ऐसी (सुररमणीहिं) देवांगनाओंसे (सय) सदैव (वंदिआ) वन्दन कियेगए. (भावार्थ) पूनमके चांदके समान है मुख जिन्होंके सदा प्रफुल्लित हैं नेत्ररूपी कमल जिन्होंके स्तनके भारसे झुकीहुई मुठ्ठीसे ग्रहणकरनेलारक हैं उदर जिन्होके सुन्दर हैं भुजलता जिन्होंकी पुष्ट हैं कटिपश्चादागजिन्होंके ऐसी देवांगनाओंसे जिन अजितनाथ और शान्तिनाथ भगवानके चरण सदा वन्दन किये गए हैं. ॥गाथा ॥ आरिसकिडिभकुछग्गंठिकासाइसार ।। खयजरवणलूआसातसोसोदराणि ॥ नहमुहदसणच्छीकृच्छिकण्णाइरोगे ॥ महं जिमझुअपाया स-पसाया हरन्तु ।। १९ ।।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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