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उल्लासिक स्तोत्रम् ॥ राजाज्ञाको भलीभाँति पालनेवाले संपूर्ण पृथ्वीके राज्यको कपडे पर लगे हुए तृणके समान छोडकर मोक्षके मार्ग रूप चारित्रका अंगीकारकरनेवाले प्रसिद्ध जिनभगवान अजितनाथ और शान्तिनाथस्वामी मुझपर प्रसन्न होओ.
॥ गाथा ॥ छणससिवयणाहिं फुल्लनित्तुप्पलाहिं। थणभरन मिरीहिं मुष्ठिगिज्जोदरीहीं॥ ललिअभुअलयाहिं पीणसोणित्थणीहि ॥ सय सुररमणीहिं वंदिआ जेसि पाया॥१॥
(छाया) ययोः पादौ क्षणशशिवदनाभिः फुल्छनेत्रोत्पलाभिः स्तनभरनम्राभिः मुष्टिग्राह्योदरीभिः ललितभुजलताभिः पीनश्रोणिस्थलीभिः सुररमणीभिः सदा वन्दिती
. (पदार्थ) (जेसि) जिन अजितनाथ और शान्तिनाथ भगवानके ( पाया ) चरण (छण) पूर्णिमाके ( ससि) चांदके समान हैं ( वयणाहिं ) मुख जिन्होंके (फुल्ल ) सदा फूले हुए हैं ( नित्त ) नेत्ररूपी ( उप्पलाहिं ) कमल