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उल्लास्ति स्तोत्रम् ॥
(छाया) यौ जिनौ हरिकरिपरिकीर्ण पक्वपदातिपूर्ण आज्ञासज्जं सकलपृथ्वीराज्यं पटलनं तृणमिव छर्दित्वा मुक्तिमार्ग चरणं अनुप्रपन्नौ तौ जिनौ मे प्रसन्नौ भवताम्
(पदार्थ) (हरि ) घोडे और (करि) भद्रादिजातीय हाथियोंसे ( परिकिणं) व्याप्त ( पक) शत्रुओंको रोकने लायक (पाइक) सिपाहीयोसे ( पुणे ) भराहुआ ( आण) राजाकी आज्ञाको ( सज्जं ) पालन करनेवाला ( सयल) सकल ( पुहवि ) पृथ्वीके ( रज्जं ) राज्यको ( पडिलग्गं) कपडेमें लगेहुए ( तणमिव ) तिनके के समान ( छडिअं) छोडकर (मुत्तिमग्गं) मोक्षका मार्ग रूप ( चरणं ) चारित्रका ( अणुपवण्णा ) अंगीकार करनेवाले ऐसे (जे) जो प्रसिद्ध (जिणा) शान्तिनाथ और अजितनाथस्वामी (ते) वे (मे) मुझपर ( पसण्णा ) प्रसन्न ( हुन्तु ) होओ.
(भावार्थ) ( बाल्हीकादिदेशोंमें पैदाहोनेवाले) बोडे और भद्रादि जातीयहाथियोंसे परिपूर्ण शूर सिपाहियोंसे भरेहुए