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च्यातिस्तोत्रम् ॥
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संत्रस्त किये गए लोगोंको ( जरुरि ) समुहकी ( लहर ) लहरियों में ( हीरताण ) हुदने वाले लोगों को ( गुति) कैदखाने में ( ठियाण ) बन्द किये हुए लोगोंको (जलिअ ) जलती हुई ( जलण) दावानिकी ( जाला ) ज्वालाओंसे ( अलिंग आणं ) आलिंगित किये हुए लोगोंको (सन्ति) शान्ति ( जणयइ ) उत्पन्न करता है.
( भावार्थ )
शान्तिनाथ और अजितनाथ स्वामी का ध्यान घोर अरण्यमें छूटे हुए लोगों को और राजाओंसे संत्रस्त कीये हुए लोगोंको और समुद्री लहरियोंमें डूबते हुए लोगोंको और कैदखाने में बन्द किये हुए लोगोंको और जलती हुई दावा की ज्वालाओं से आलिंगित हुए लोगोंको शीघ्र ही शान्ति उत्पन्न करता
|| गाथा ॥
हरिकरिपारिकिरणं एकाइकपुष्णं ॥ सयलपुहविरज्जं छड्डअंआणसज्जं ॥ तणमिव पडिलग्गं जे जिणा मुत्तिमग्र्ग ॥ चरणमणुपवण्णा हुंतु ते मे पसण्णा ॥ १३ ॥