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उल्लासित स्तोत्रम् ।
मानो व्याप्त ऐसा क्या ? उज्वल, और कसोटीपर खींची हुई सोनेकी रेखाकी कान्तिको चुरानेवाला ऐसा आजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीका स्वरूप चिन्तन करनेसे इस जगतमें लक्ष्मीको कैद की हुई के समान अत्यन्त निश्चल करता है.
(गाथा) अडविनिवडिआणं पत्थिवुत्तासिआणं ! जलहिलहरि हीरताण गुत्तिठियाणम् ॥ जलिअजलणजालालिंगिआणं च झाणं । जणयइ लहु संतिं संतिनाहाजिआणम् ॥१२॥
(छाया) शांतिनाथाजितयो वा॑नं लघु अटविनिपतिताना पार्थिवौत्रासिताना जलधिलहरिहियमाणानां गुप्तिस्थितानां चलितज्वलनज्वालालिंगितानां शान्तिं जनयति.
(पदार्थ ) (संतिनाह ) शान्तिनाथ और (अजिआणं) अजितनाथ स्वामीका (झाणं ) ध्यान (लहु ) शीघ्रही ( अडवि) घोर अरण्यमें (निवडिआणं ) छूटे हुवे लोगोंको ( पत्थिव ) राजाओंसे ( उत्तासिआणं )