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उल्हासिक स्तोत्रम् ॥
(छाया)
जिनयुगपादाः सप्रसादाः सन्तः मे अर्शकिटिभकुष्टग्रंथिकासातिसारक्षयज्वरव्रणलूतश्वासशोषोदराणिनखमुख
दशनाक्षिकुक्षिकर्णादिरोगान् हरन्तु
( पदार्थ )
(जिनसुन ) ( मह ) मेरे
( सप्पसाया ) प्रसन्नतायुक्त ऐसे दोनों जिन भगवान के ( पाया ) चरण ( अरिस ) मस्से ( किडिभ ) पैरका रोग ( कुठ्ठ ) कोडकी बीमारी ( ग्गंठि ) गठिया ( कास ) खांसी का रोग ( अइसार ) दस्तकी बीमारी ( खय ) क्षयरोग ( जर ) बुखार ( वण ) फोडेकी बीमारी (लूआ ) फुनसियोंकी बीमारी ( सास ) दमकी बीमारी ( सोस ) कंठ और तालुशोष ( उदराणि ) पेटकी बीमारियां (नह ) नखकी बीमारी ( मुह ) मुखकी बीमारी ( दसण ) दांतकी बीमारी ( अच्छी ) आंखकी बीमारी ( कुच्छि ) कांखकी बीमारी ( कण्णाइरोगे) कान के रोगादिकों का (हरन्तु ) नाश करो. ( भावार्थ )
प्रसन्नतायुक्त ऐसे दोनों जिऩभगवान के चरण मेरे मस्सों को पैर रोगको कोडको गठिया रोगको खांसी के