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उल्हासिक स्तोत्रम् ॥
महामारी ( रुद्दखुद्दोवसग्गा ) भयानक कूराशयवाले व्यंतरादिकृत उपद्रव ( अजिअ ) अजितनाथस्वामी के ( संति ) शान्तिनाथस्वामीके ( कित्तणे ) कीर्तन किये सते (भास्कर) सूर्य से ( लुंखियन्त्र ) स्पर्श किये हुये (निविडतर ) अतिगाढ़ ( तमोहा ) अन्धकार के समूह के समान ( झत्ति ) शीघ्र ही ( पलयं ) नाशको ( जन्ती ) प्राप्त होते हैं. ( भावार्थ )
शत्रु हाथी सिंह तृषा उष्णता जलघात चोर मनोव्यथा शारीरिकपडा संग्राम राजकृत उपद्रव महामारी भयानकक्रूराशयवाले व्यंतरादिकृत उपद्रव ये सब अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामी कीर्तन से सूर्य से स्पर्श किये हुवे अतिगाढ अन्धकारके समृहके समान शीघ्रही नष्ट हो जाते
|| गाथा ||
निचिअदुरिअदारुद्दित्तझाणाग्गिजाला । परियमिवगौरं चिंतिअं जाणरूवं ॥ कणयनिहसरेहाकं तिचोरं करिज्झा | चिरथिर महलच्छिं गादसंथेभिअव्व ॥ ११ ॥