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________________ उल्लासिक स्तोत्रम् ।। अनित्य ( सद् ) वस्तुअस्तित्व ( असद् ) वस्वभाव ( अभिलप्प ) वर्णनकेयोग्य ( अलप्पं.) न वर्णन के योग्य ( एगं ) एकवचननिर्देश्य (अणेगं) अनेकवचन निर्देश्य प्रतिपादन की जाती है. (भावार्थ) , , उन प्रसिद्ध अजितनाथ और शान्तिनाथ जिन भगवानका स्मरण करताहूं जिन्होंका बहुत प्रकारके नयभेद हैं जिसमें कुत्सितनयोंसे विरुद्ध अत्यन्त प्रसिद्ध वचन अवर्णनीय है जिसवचनमें वस्तु (व्यवहारनयसे) अनित्य और (निश्चय नयसे) नित्य वस्तुसद्भाव और अभाव वस्तुवर्णनीयत्व और अवर्णनीयत्व वरत्वेकवचन निर्देश्यता और अनेकवचननिर्देश्यता भलीभांति प्रतिपादन की जाती है. ॥गाथा ॥ पसरइ तिअलोए ताव मोहंधयारं ॥ . भमइ जय मसण्णं ताव मित्थत्तछण्णम् ॥ फुरइ फुड फलंताणतणाणंसुपूरो ॥ पयड मजियसंतीझाणसूसे न जाव ॥९॥ (छाया) तादत् त्रैलोक्ये मोहान्धकार प्रसरति तावत् असंझं या॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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