SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उल्लासिक स्तोत्रम् ॥ (पदार्थ) हे भव्य जीवो ( कया ) की है ( असेस ) सम्पूर्ण जगत्रयों ( संती ) शान्ति जिन्होंने (ते ) ऐसे उन प्रसिद्ध (अजिअसंती) अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीकी ( थुणह) स्तुतिकरो. ( जाणि) जिन्होंकी ( छज्जए ) शोभायमान ( मुत्ती ) मूर्ति ( सरभस ) वेगसहित ( परिरंभारंभ ) आलिंगन का आरंभकरनेवाली ( निव्वाणलच्छी ) मोक्षरूप लक्ष्मीके ( घण) मांसल ( थण ) कुचोंके (घुसिणंक ) कुंकुमके (प्पंक) पंकसे ( पिंगाकयव ) पीली की हुई है क्या ? इस हेतुसे ही ( कणक ) सोनेके ( रय ) रज समान (पिसंगा ) पीली मालुम होती है. | (भावार्थ) हे भव्यजीवो की हे जगत्रयमें शान्ति जिन्होंने ऐसे उन. प्रसिद्ध अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीकी स्तुति करो जिन्होंकी शोभायमानमूर्ति वेगसहित आलिङ्गनका आरंभ करनेवाली मोक्षरूप लक्ष्मीके मांसल कुचोंपर लगेहुए कुंकुमके पंकसे पीली की हुई है क्या ? इस हेतुसे ही सोनेके रज समान पीली मालुम होती है.
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy