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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
(गाथा छंदः)
गाहा जइ इच्छह परमपयं अहवा कित्तिं सुवित्थडां भुवणे ॥ ता तेलुकुद्धरणे जिणवयणे आयरं कुणह ॥ ४२ ॥
- (छाया) यदि परमपदं अथवा भुवने सुविस्तृता कीर्ति इच्छया तदा त्रैलोक्योद्धरणे जिनवचने आदरं कुरुथ ।
(पदार्थ) (जइ) यदि ( परमपयं ) मोक्षपद ( अहवा) अथवा ( भुवणे ) जगतमें ( सुवित्थडा ) अतिविस्तीर्ण ( कित्तिं ) कीर्ति ( इच्छह ) चहाते हो ( ता ) तो ( तेलुकुद्धरणे ) लोकत्रयको उद्धार करने वाले (जिणवयणे ) जिन वचनमें ( आयरं ) आदर ( कुणह) करो।
(भावार्थ) हे भव्य जीवो यदि मोक्षपद की अभिलाषाहो अथवा जगतमें अति विस्तीर्ण कीर्तिकी इच्छा हो तो तीनों लोक को उद्धार करने वाले जिनभगवानके वचनोंमें आदर करो।
११ शां० स्तवः