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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
(गाथाछंदः)
॥ गाहा ॥. सवं पसमइ पावं पुण्णंवदइ नमंसमाणस्स । संपुन्नचंदवयणस्स कित्तणं अजिअसतिस्स ॥४१॥
(छाया) संपूर्णचन्द्रवदनयोः अजितशान्तिनाथयोः कीर्तनं नमस्यमानस्य सर्व पापं प्रशमयति च पुण्यं वर्धयति ।
(पदार्थ) (संपुन्न) संपूर्ण (चंद) चन्द्रके समान है (वयणस्स) मुख जिन्होंका ऐसे ( अजिअ संतिरस) आजितनाथ
और शान्तिनाथ स्वामीका (कित्तणं) कीर्तन (नमं समाणस्स) अजित शान्तिनाथ स्वामीको नमस्कार करने वाले पुरुषके ( सव्वं) सब ( पावं) पाप ( पसमइ ) नाश करता है और (पुण) पुण्यको (वड्ढइ) बढाता है।
(भावार्थ) पूर्णचन्द्रके समान मुख है जिन्होंका ऐसे अजितशान्तिनाथ स्वामीका कीर्तन अजितशान्तिनाथ स्वामीको नमस्कार करनेवाले पुरुषके सब पाप नाश करता है और पुण्यको बढ़ाता है।