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________________ अजितशान्ति स्तवनम् i ( गाथाछंदः ) ॥ गाहा ॥ ववगयककिकलुसाणं ववगयनिद्धंत रागदोसाणं । बवगय पुणभवाणं नमोत्थु देवाहिदेवाणं ॥ ४० ॥ ( छाया ) ६१ व्यपगतकलिकलुषेभ्यः व्यपगत पुनर्भवेभ्यः देवाधिदेवेभ्यः नमः अस्तु । ( पदार्थ ) व्यपगत निर्धूतराग दोषेभ्यः ( वय ) नोशहागया है ( कलिकलुसाणं ) कलह संबंधि मनका मालिन्य जिनका ( क्वगयनिद्धंतरागदोसाणं ) नष्ट होगए हैं रागद्वेष जिनके (ववगय ) नाशहोगया है ( पुणभवाणं ) पुनर्जन्म जिनका ऐसे ( देवाहिदेवाणं ) देवाधिदेवतीर्थंकर भगवानको (नमोत्थु ) नमस्कारहोओ । ( भावार्थ ) माशहोगया है कलहसंबंधी मनमालिन्य जिनका नाश होगए हैं रागद्वेष जिनके नाशहोगया है पुनर्जन्म जिनका ऐसे देवाधिदेव तीर्थंकर भगवानको मैं नमस्कार करता हूं ।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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